Shri Sheetla Devi Mata Mandir काफी चमत्कारी है शीतला माता का यह मंदिर, जानिए क्या है मान्यता

शीतलाष्टमी का पर्व 25 मार्च दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। यह पर्व चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, हालांकि कुछ जगहों पर सप्तमी तिथि और कुछ जगहों पर होली के बाद पड़ने वाले पहले मंगलवार या शुक्रवार को मनाया जाता है। माना जाता है कि वसंत पंचमी से शुरू हुआ होली का पर्व शीतलाष्टमी पर संपन्न होता है। इस दिन शीतला माता का विशेष पूजन किया जाता है और बसौड़ा अष्टमी मनाते हुए बासी भोजन किया जाता है। शीतलाष्टमी का पर्व पर लखनऊ के श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर की काफी मान्यता है। यहां शीतला माता अपनी सात बहनों के साथ रहती हैं। यहां पर शीतलाष्टमी के दिन ‘आठों का मेला’ लगता है।

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रात 1 बजे से लग जाएगी अष्टमी
उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान के संस्कृत साहित्याचार्य महेंद्र कुमार पाठक बताते हैं कि स्कंदपुराण के अनुसार शीतलादेवी का वाहन गर्दभ है। उनके हाथों में कलश, सूप, मार्जन-झाडू और नीम के पत्ते दर्शाए गए हैं। मान्यता के अनुसार उन्हें चेचक आदि कई रोगों के निदान की देवी माना गया है। यह भी कहा जाता है कि गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार 24 मार्च की रात एक बजे से अष्टमी लग जाएगी, जो 25 मार्च की रात 10:35 बजे तक रहेगी।

रात से ही शुरू हो जाएंगे दर्शन
लखनऊ के श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर में मां के दर्शन गुरुवार 24 मार्च की रात 1 बजे से शुरू हो जाएंगे। महिलाओं को मुख्य द्वार से और पुरुषों को दूसरे प्रवेश द्वार से दर्शन की अनुमति दी जाएगी। मंदिर की ओर से सांस्कृतिक दंगल का आयोजन नहीं करवाया जा रहा है पर सेवादारों के लिए भंडारा होगा। शीतलाष्टमी पर मां शीतला की आरती कर बताशा और बासी हलुआ, पूड़ी, पुआ, गुलगुला, ऐठी-ग्वैठी का भोग लगाया जाएगा।

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मंदिर को लेकर यह है मान्यता
श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर को लेकर मान्यता है कि सन् 1779 में बंजारों ने वहां के तालाब में माता के पिंडी रूप के दर्शन किए थे। बाद में उन पिंडी रूपों को वहीं मंदिर बनवाकर स्थापित करवाया गया, जो वर्तमान में श्रीबड़ी शीतला देवी मंदिर के रूप में लोकप्रिय है। वहां माता शीतला अपनी सात बहनों के साथ विराजमान हैं। उन सात बहनों में माता सरस्वती, माता काली, मां दुर्गा, मां भैरवी, मां खजुरिया शामिल हैं। साथ ही मंदिर परिसर में मां अन्नपूर्णा, मां चंडी, मंसा देवी, संकटामाता भी पूजी जाती हैं। इस मंदिर को नवाबों और राजा टिकैतराय का भी संरक्षण प्राप्त था। लखौरी इंटों से बने इस मंदिर में चारमुखी शिवलिंग सहित कुल 28 शिवलिंग स्थापित हैं। शीतलाष्टमी पर मुंडन, कर्णछेदन जैसे विभिन्न संस्कार भी करवाने का चलन है।

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