Shani Amavasya Katha शनि अमावस्या व्रत कथा और इसके लाभ जानें

शनिवार के दिन जब अमावस्या तिथि लगती है तो इसे शनि अमावस्या कहते हैं, जिसका धार्मिक दृष्टि से काफी महत्व है। कहते हैं कि शनि अमावस्या के दिन शनि देव की पूजा-अर्चना करना बहुत ही फलदायी होता है। इससे शनिदेव का प्रतिकूल प्रभाव कम होता है। ढैय्या और साढेसाती में शनि अमावस्या के दिन शनिदेव की पूजा करने से लाभ मिलता है। साथ ही इस दिन शनि अमावस्या की कथा का पाठ करना भी शुभ लाभ दिलाता है।

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विभिन्न पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार सूर्य देव की दो पत्नी थी संज्ञा और छाया। संज्ञा भगवान विश्वकर्मा की पुत्री थी। जब इनका विवाह सूर्यदेव से हुआ तो वह सूर्य के तेज को सह नही पा रही थीं। एक दिन देवी संज्ञा अपने प्रतिरूप छाया को ले आई और उसे अपनी जगह रहने के लिए कह दिया। छाया सूर्य देव की पत्नी बनकर रहने लगीं। दूसरी ओर संज्ञा खुद धरती पर अश्व रूप में आकर विचरण करने लगीं।

सूर्य देव के तेज को छाया भी सह नहीं पा रही थीं। एक दिन जब सूर्य देव जब छाया के पास संतान प्राप्ति की इच्छा से आए तो उनके तेज को देखकर छाया का रंग काला पड़ गया और वह गर्भवती हो गईं। छाया के पुत्र के रूप में भगवान देव का जन्म हुआ। जिस दिन शनि देव का जन्म हुआ उस दिन शनिवार और अमावस्या तिथि थी। इसलिए शनि अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।

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शनिदेव के देखकर सूर्य देव को क्रोध हो आया क्योंकि उनका रंग श्याम था। सूर्य देव ने संज्ञा से कहा कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता है। इसके बाद सूर्य देव को यह भी भेद पता चल गया कि उनकी पत्नी संज्ञा की जगह काफी समय से छाया रह रही हैं। सूर्य देव इस सत्य को जानकर और भी क्रोधित हुए और संज्ञा एवं शनि देव को छोड़कर अपनी पहली पत्नी संज्ञा की तलाश में चले गए।

शनि देव जब बड़े हुए तो उन्होंने स्वयं को सूर्य देव से भी अधिक प्रभावशाली और ताकतवर बनाने के प्रण किया और भगवान शिव की तपस्या करने लगे। शिवजी ने शनिदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर शनि देव को ग्रहों में न्यायाधीश और दंडाधिकारी का पद प्रदान किया। शिवजी ने यह भी वरदान किया कि, हे शनि, नवग्रहों में तुम्हारा विशेष स्थान और सम्मान होगा। तुम्हारे न्याय से तीनों लोगों में कोई भी नहीं बचेगा। तुम सभी जीवों के कर्मों को देखते हुए न्याय करोगे।

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शिवजी से वरदान पाकर शनिदेव नवग्रहों में विराजमान हो गए और पूजित हुए। शनि अमावस्या के दिन शनि की कथा का पाठ करना शुभ फलदायी होता है, जो कर्मों से उच्च पद दिलाने की प्रेरणा देता है।