Sawan Ka Dusra Somvar सावन का दूसरा सोमवार, जानें शिवजी को क्यों नहीं चढ़ाते शंख से जल

शंख से जल न चढ़ाने का रहस्‍य

13 जुलाई आज सावन का दूसरा सोमवार है। इस अवसर पर शिव भक्त भगवान भोलेनाथ को दूध, गंगाजल, गन्ने से जूस से अभिषेक करेंगे। लेकिन भगवान विष्णु की तरह शिवजी को कोई भी शंख से जल नहीं अर्पित नहीं करेंगे। आपने कभी सोचा है क‍ि सभी देवी-देवताओं को तो शंख से जल चढ़ाया जाता है। भगवान विष्‍णु और लक्ष्‍मी को तो शंख से जल अर्पित करना अत्‍यंत प्र‍िय है तो फिर श‍िवजी की पूजा में इसकी मनाही क्‍यों है? आखिर क्‍यों भोलेशंकर की पूजा में शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है। आइए जानते हैं यह राज…

श‍िवपुराण की कथा में छुपा है शिव और शंख का वैर क्यों

शिवपुराण के अनुसार शंखचूड नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था। शंखचूड दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी तब उसने संतान प्राप्ति के ल‍िए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। उन्‍होंने दंभ से वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोकों के लिए अजेय महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्‍तु कहकर अंतर्धान हो गए। इसके बाद दंभ के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। शंखचुड ने पुष्कर में ब्रह्माजी को प्रसन्‍न करने के ल‍िए घोर तप क‍िया। तप से प्रसन्‍न होकर ब्रह्मदेव ने वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्णकवच दिया।

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ब्रह्मदेव से भी है कथा का संबंध

शंखचूड़ की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर वर देने के बाद ब्रह्मा ने शंखचूड को धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। फिर वे अंतर्धान हो गए। ब्रह्मा की आज्ञा से तुलसी और शंखचूड का विवाह हुआ। वरदान के मद में चूर दैत्यराज शंखचूड ने तीनों लोकों पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया। देवताओं ने त्रस्त होकर श्रीहर‍ि से मदद मांगी। लेक‍िन उन्होंने खुद दंभ को ऐसे पुत्र का वरदान दिया था। इसलिए उन्‍होंने भोलेशंकर से प्रार्थना की। तब शिव ने देवताओं के दुख दूर करने का निश्चय किया और वे चल दिए। परंतु श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की वजह से शिवजी भी उसका वध करने में सफल नहीं हो पा रहे थे।

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इसलिए शंख है श‍िव की पूजा में न‍िषेध

तब विष्णु ने ब्राह्मण रूप धारण करके दैत्यराज से उसका श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। इसके बाद शंखचूड़ का रूप धारण कर तुलसी के शील का हरण कर लिया। अब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया। कहा जाता है उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। क्‍योंक‍ि शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए माता लक्ष्मी और श्रीहर‍ि को शंख का जल अत्‍यंत प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। लेक‍िन शिव ने उसका वध किया था तो शंख का जल शिव पूजा में न‍िषेध हो गया। यही वजह है क‍ि भोलेशंकर को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।

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