Navratri 2018: यहां भालू का पूरा परिवार है माता का भक्त, आरती और परिक्रमा कर लेता है प्रसाद

150 साल पुराना है यह मंदिर

छत्तीसगढ़ का यह चंडी मंदिर महासमुंद जिले के घूंचापाली गांव में स्थित है। भालुओं की भक्ति देखकर यहां श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंचते हैं। पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का इतिहास तकरीबन डेढ़ सौ साल पुराना है। यहां चंडी देवी की प्रतिमा प्राकृतिक है। मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भालुओं को देखने के लिए कई बार घंटों इंतज़ार करते हैं।

आरती के समय आते हैं भालू

बताया जाता है कि सालों से माता के मंदिर में शाम ढलते ही इन विशेष भक्तों का आना शुरू हो जाता है। हर शाम आरती के समय भालू का पूरा परिवार माता के दर्शन के लिए पहुंच जाता है। माता का प्रसाद लेता है और फिर वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए जंगल में लौट जाता है।

माता की परिक्रमा करते हैं भालू

जब भालुओं का परिवार आता है तो इनमें से एक भालू मंदिर के बाहर खड़ा रहता है, फिर बाकी के भालू मंदिर में प्रवेश करते हैं। इसके बाद पूरा परिवार माता की प्रतिमा की परिक्रमा भी करता है। हैरानी की बात यह है कि भालू मंदिर में आकर श्रद्धालुओं के साथ पूरी तरह दोस्ताना व्यवहार करते दिखते हैं जैसे कोई पालतू जानवर हों।

जामवंत का परिवार बताते हैं गांववाले

प्रसाद लेने के बाद भालुओं का पूरा परिवार चुपचाप जंगल की ओर लौट जाता है। गांव के निवासी बताते हैं कि भालू कभी भी हिंसक नहीं होते और ना ही आजतक उन्होंने किसी को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि कभी-कभी वो नाराजगी का इजहार जरूर करते हैं लेकिन कभी किसी को परेशान नहीं करते।गांववाले उन भालुओं को जामवंत परिवार कहने लगे हैं।

यह भी पढ़ें: नवरात्र के हैं इतने लाभ, जानें किन-किन देवताओं ने रखा था यह व्रत

कभी किसी को नहीं करते परेशान

वन्यजीव विशेषज्ञ बताते हैं कि माता के मंदिर में भालुओं और इंसानों के बीच होनेवाला आमना-सामना हैरानी की बात है। उनका कहना है कि आमतौर पर जंगल में भालू का किसी इंसान से सामना हो जाए तो हमले की पूरी आशंका रहती है। श्रद्धालुओं से भालू इस तरह से पेश आते हैं जैसे घर का ही कोई सदस्य हों।

तंत्र साधना के लिए मशहूर था मंदिर

गांववाले बताते हैं कि चंडी माता का यह मंदिर पहले तंत्र साधना के लिए मशहूर था, यहां कई साधु-संतों का डेरा था। तंत्र साधना करनेवालों ने पहले यह स्थान गुप्त रखा था लेकिन साल 1950-51 में इसे आम जनता के लिए खोला गया। प्राकृतिक रूप से बनी साढ़े 23 फुट ऊंची दक्षिण मुखी इस प्रतिमा का विशेष धार्मिक महत्व है।

यह भी पढ़ें: Happy Navratri Wishes: देवी के इन नौ रूपों को समर्पित हैं नवरात्र, जानें हर स्वरूप का महत्व

यह भी पढ़ें: नवरात्र के दरम्यान यौन संबंध बनाना कितना सही कितना गलत जानें