नरक चतुर्दशी पूजा सामग्री
- काले तिल
- चावल
- लकड़ी की चौकी
- चांदी के सिक्के
- दीये
- पूजा थाली
- रोली
- धूप
- फूल और मिठाई
- प्रार्थना
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल ‘अपामार्ग’ को स्नान के समय मस्तक पर घुमाना चाहिये। इससे नरक के भय का नाश होता है। उस समय निम्न प्रकार से प्रार्थना करे-
- सीता-लोष्टा-सह-युक्त: शकंटक-दलनविता ।
हारा पापमपमार्ग! भ्राम्यमना पुनः पुनाः ॥
- तर्पण
स्नान के पश्चात् ‘यम’ के चौदह नामों का तीन-तीन बार उच्चारण करके तर्पण (जल-दान) करना चाहिये। साथ ही ‘श्री भीष्म’ को तीन अञ्जलियाँ जल-दान देकर तर्पण करना चाहिये, यहां तक की जिनके पिता जीवित है, उन्हें भी यह जल-अञ्जलियाँ देनी चाहिये। जल-अञ्जलि हेतु यमराज के निम्नलिखित 14 नामों का तीन बार उच्चारण करना चाहिये-
- ॐ यमया नमः ॥
ॐ धर्मराजय नमः ॥
ॐ मृत्युवे नमः ॥
ॐ अंतकाय नमः ॥
ॐ वैवस्वताय नमः ॥
ॐ कलय नमः ॥
ॐ सर्वभूतक्षय्या नमः ॥
ॐ औदुम्बराय नमः ॥
ॐ दधनाय नमः ॥
ॐ निलय नमः ॥
ॐ परमेष्ठिन नमः ॥
ॐ वृकोदराय नमः ॥
ॐ चित्राय नमः ॥
ॐ चित्रगुप्ताय नमः ॥
कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सायं-काल घर से बाहर नरक-निवृत्ति के लिए धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष-रुपी चार बत्तियों का दीपक यम-देवता के लिए सर्वप्रथम जलाना चाहिये। इसके पश्चात् गो-शाला, देव-वृक्षों के नीचे, रसोई-घर, स्नानागार आदि में दीप जलाये। इस प्रकार ‘दीप-दान’ के बाद नित्य का पूजन करे।
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