Nandgaon LatthMar Holi 2022 नंदगांव के बारे में जानें खास बातें, जहां आज मनाई जा रही लट्ठमार होली

राधारानी की नगरी बरसाने और कान्हा की नगरी नंदगांव में लट्ठमार होली खेली जा चुकी है। अब ब्रज के अन्य क्षेत्रों में होली खेली जाएगी। लठमार होली तकरीबन महीने भर से अपनी लाठियों को तेल पिला रही नंदगांव हुरियारिनों ने सज धजकर पारंपरिक पोशाक पहनकर बरसाने से आए हुरियारों के साथ लठमार होली खेली। नंदगांव की लट्ठमार होली की परंपरा सदियों से चली आ रही है और इसे देखने के लिए लाखों लोग देश-विदेश से यहां पहुंचते हैं। लट्ठमार होली पहले बरसाने में खेली जाती है और उसके बाद नंदगांव में खेली जाती है। नंदगांव वही जगह है, जहां भगवान कृष्ण रहते थे और उनके पालक पिता नंद बाबा से संबंध होने के कारण यह स्थान तीर्थ बन गया है। नंदगांव की केवल होली ही प्रसिद्ध नहीं है बल्कि यहां कई ऐसे तीर्थस्थल हैं, जो आज भी कृष्ण से संबंध रखते हैं। आइए जानते हैं नंदगांव के बारे में खास बातें…

इस तरह बसा नंदगांव
नंदबाबा और माता यशोदा पहले गोकुल में रहते थे। बचपन में भगवान कृष्ण को मारने के लिए कंस ने कई राक्षस गोकुल भेजे। इस भयभीत होकर नंदरायजी और माता यशोदा ने अपने परिवार और गौ, गोप और गोपियों के साथ गोकुल छोड़ दिया और कुछ समय के लिए छटीकरा के आसपास के इलाकों में रहे और फिर नंदगांव में चले गए। नंदगांव का यह गांव नंदीश्वर पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसी पहाड़ी की चोटी पर नंदरायजी ने अपना महल बनाया और सभी चरवाहों ने पहाड़ी के आस-पास अपने घर बनाए। नंदराय द्वारा बसाए जाने के कारण इस गांव का नाम नंदगांव पड़ा।

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नंद भवन
नंद भवन को नंदबाबा की हवेली भी कहा जाता है। इस भवन में भगवान कृष्ण की काले रंग के ग्रेनाइट में उत्कीर्ण प्रतिमा है। उन्हीं के साथ नंदबाबा, यशोदा, बलराम और उनकी माता रोहिणी की मूर्तियां भी हैं।

नंदीश्वर मंदिर
नंदगांव में भगवान शंकर का एक मंदिर भी है, जिसे नंदीश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। कृष्ण जन्म के बाद भगवान शंकर साधु के वेश में उनके दर्शन के लिए नंदगांव आए थे। पर यशोदा ने उनका विचित्र रूप देख कर इस आशंका से कि शिशु उन्हें देख कर डर न जाए उन्हें अपना बालक नहीं दिखाया। भगवान शंकर वहां से चले गये और जंगल में जाकर ध्यान लगा कर बैठ गए। इधर भगवान श्रीकृष्‍ण अचानक रोने लगे और सब ने उन्हें चुप कराने की बहुत कोशिश पर भी वह जब चुप ही नहीं हुए तब यशोदा के मन में विचार आया कि जरूर वह साधु कोई तांत्रिक रहा होगा जिसने बालक पर जादू-टोना कर दिया है। यशोदा के बुलाने पर एक बार फिर शंकर वहां आये। तत्काल भगवान कृष्ण ने रोना बंद कर उन्हें आया देख कर मुस्कुराना शुरू कर दिया। साधु ने से माता यशोदा से बालक के दर्शन करने और उसका जूठा भोजन प्रसाद रूप में मांगा। तभी से यह परंपरा चली आ रही है कि भगवान कृष्ण को लगाया गया भोग बाद में नंदीश्वर मंदिर में शिवलिंग पर भी चढ़ाया जाता है। वन में जिस जगह शंकर ने कृष्ण का ध्यान किया था, वहीं नंदीश्वर मंदिर बनवाया गया है।

शनि मंदिर
पान सरोवर से कुछ ही दूरी पर कोकिला वन में स्थित प्राचीन शनि मंदिर है। मान्यता है कि शनि जब यहां आए थे तो भगवान कृष्ण ने उन्हें एक जगह स्थिर कर दिया ताकि ब्रजवासियों को उनसे कोई परेशानी न हो। यहां हर शनिवार हजारों श्रद्धालु शनि भगवान के दर्शन करते हैं। शनिश्चरी अमावस्या को यहां पर विशाल मेले का आयोजन होता है। कोकिलावन के शनि मंदिर से नंदगांव का नजारा भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। जब कि नंदराय मंदिर के ऊपर से आप ब्रज के हरे भरे भूभाग, इसके प्राकृतिक सौंदर्य, कोकिलावन के शनि मंदिर और बरसाना के राधारानी के महल का दर्शन कर सकते हैं।

यशोदा कुंड
नंद भवन के पास एक कुंड स्थित है, जिसे यशोदा कुंड के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि माता यशोदा यहां प्रतिदिन स्नान करती थीं। कभी–कभी कृष्ण और बलराम को भी साथ लाती थीं। कुंड तट पर नरसिंह जी का मंदिर है। यशोदा कुंड के पास ही निर्जन स्थल में एक प्राचीन गुफा भी है। जहां अनेक संत महानुभावों ने साधनाकर भगवद प्राप्ति की है।

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हाऊ बिलाऊ
यशोदा कुंड के पास ही कृष्ण की बाल क्रीड़ा का स्थान है, जिस हाऊ बिलाऊ कहते हैं। यहां सखाओं के साथ कृष्ण बलदेव दोनों भाई बाल क्रीड़ा करने में इतने तन्मय हो जाते थे कि उन्हें भोजन करने का याद भी नहीं रहता था। मैया यशोदा कृष्ण बलराम को बुलाने के लिए रोहिणी जी को पहले भेजतीं लेकिन जब वे बुलाने जातीं तो उनकी पकड़ में ये नहीं आते, इधर उधर भाग जाते थे। इसके बाद यशोदाजी स्वयं जातीं और बड़ी कठिनता से दोनों को पकड़कर घर लातीं और उन्हें स्नान आदि कराकर भोजन करातीं। आज भी हौआ की प्रस्तरमयी मूर्तियां कृष्ण की इस मधुर बाल लीला का स्मरण कराती हैं।