Jagannath Rath Yatra Katha : भगवान जगन्नाथ का मुस्लिम भक्त से अनोखा प्यार, रथ रोककर मिलते हैं होता है जयजयकार

भगवान जगन्नाथ की आज रथ यात्रा हो रही है। भगवान आज अपने नंदिघोष रथ जिसे गरुड़ध्वज रथ भी कहते हैं में विराजमान होकर जगन्नाथपुरी मंदिर से मौसी के घर गुंडिचा मंदिर जाएंगे। यहां भगवान जगन्नाथ मौसी के घर पर 7 दिनों तक ठहरने के बाद वापस अपने मंदिर जगन्नाथपुरी में लौटेंगे। इस पुरी यात्रा में कई अद्भुत और अनोखा दृश्य देखने को मिलता है। भक्त अपने भगवान का रथ खींचने के लिए लालायित रहते हैं। कहते हैं कि जो भी भक्त भगवान जगन्नाथ का रथ खींचता है उसे फिर शरीर में लौटना नहीं पड़ता है यानी गर्भ धारण करके जन्म मरण के चक्र में नहीं लौटना पड़ता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा की खास बातें
लाखों की संख्या में इर रथ यात्रा को देखने के लिए हर साल देश विदेश से जगन्नाथ पुरी में भक्त पहुंचते हैं। और भगवान किसी से भी भेदभाव किए बिना सभी को दर्शन देते हैं। इस जगन्नाथ पुरी रथयात्रा में एक अद्भुत और अनोखा दृश्य तो तब नजर आता है जब भगवान का रथ मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी चलकर रुक जाता है और कुछ देर ठहरने के बाद यह रथ फिर से आगे बढ़ता है। भगवान जगन्नाथ का रथयात्रा के दौरान रुकना एक अनोखी परंपरा का हिस्सा है जो भगवान का भक्तों के प्रति समान भाव को दर्शाता है।

जगन्नाथ रथ यात्रा और सालबेग की कथा
भगवान जगन्नाथ के मंदिर से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर एक मजार है जिसे भगवान जगन्नाथ के भक्त सालबेग की मजार के नाम से जाना जाता है। इस मजार पर भगवान जगन्नाथ के रथ का रुकना मुगल काल से चला आ रहा है। ऐसी कथा है कि जहांगीर कुली खां जिसे लालबेग के नाम से भी जाना जाता है वह जहांगीर के समय में बंगाल का सूबेदार था। इसने एक सैन्य यात्रा के दौरान सालबेग की माता को देखा सालबेग की माता एक हिंदू ब्राह्मण महिला थी जो भगवान जगन्नाथ की भक्त थी। लालबेग ने इस हिंदू कन्या से विवाह कर लिया। इससे सालबेग का जन्म हुआ।

सालबेग के जगन्नाथ भक्त बनने की कहानी
सालबेग पर माता की भक्ति भाव का प्रभाव हुआ और वह भी भगवान जगन्नाथ का भक्त बन गया। लेकिन धार्मिक कारणों से कभी भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं कर पाया और नहीं रथ यात्रा में शामिल हो पाया। इन्होंने मंदिर से कुछ दूरी पर ही अपनी एक कुटिया बना ली थी और जब अंतिम समय इनका आया तो भगवान से प्रार्थना किया कि प्रभु एक बार अपने इस भक्त को भी दर्शन दे दो। भगवान के हृदय तक भक्त की पुकार पहुंच गई थी।

इसलिए सालबेग की मजार पर रुकता है रथ
जब भगवान का रथ गुंडिचा मंदिर मंदिर के लिए चला तो 200 मीटर चलकर ऐसे ठहर गया कि लोग जोर लगाते रहे लेकिन रथ टस से मस नहीं हुआ। कहते हैं कि भगवान उस समय रथ से उतरकर भक्त सालबेग को दर्शन देने गए थे। थोड़ी देर रुकने के बाद रथ फिर वापस चलने लगा। लोग समझ गए कि भगवान अपने भक्त को दर्शन देने गए हैं। सालबेग की मृत्यु उसी कुटिया में हो गई। इसके बाद वहीं उनका मजार बना दिया गया। लेकिन आज भी मुगल काल से चली आ रही उस परंपरा को निभाया जाता है और हर साल रथयात्रा के दौरान रथ को कुछ समय के लिए सालबेग की मजार पर रोक दिया जाता है।