कहते हैं, प्राचीनकाल में जब यातायात के साधन कम थे और वर्षा ऋतु में जब आवागमन बंद हो जाता था, तब इस पर्व पर सभी भगवान को रथ मे घुमाकर अपने वाहनों को चार माह के लिए सुरक्षित जगह पर रख देते थे। वर्षा ऋतु की समाप्ति पर दशहरा उत्सव मनाते समय निकालते थे। यहां रथों को खींचते समय एक खास बात यह देखी जाती है कि भगवान के रथों को घोड़ों द्वारा नहीं, वरन भगवान के असंख्य भक्तजनों द्वारा खींचा जाता है।
रथ यात्रा को लेकर धार्मिक मान्यताएं –
भगवान नाम का संकीर्तन करने मात्र से सौ जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है, रथ में स्थित पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्राजी का दर्शन करके मनुष्य अपने करोड़ों जन्मों के पापों का नाश कर लेता है।
रथ मार्ग में जो भक्त भगवान को साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं, वे अनादिकाल से अपने ऊपर चढ़े हुए पाप कृत कर्मों को त्यागकर मुक्त हो जाते हैं।
जो भक्त रथ यात्रा के दौरान नृत्य कर भगवान का गीत गाते हैं, वे अपनी पीड़ाओं को वहीं छोड़कर अपने जीवन के सुख में वृद्धि करते हैं।
जो भगवान के सहस्रनामों का पाठ करते हुए रथ की प्रदक्षिणा करते हैं, वे भगवान विष्णु के समान होकर वैकुंठ धाम में निवास करते हैं।
जो मनुष्य रथ यात्रा अथवा भगवान के कार्य के लिए दान करता है, उसका थोड़ा भी दान अक्षय फल के समान माना गया है।

Jagannath Rath Yatra 2024: भक्त को भगवान से जोड़ती है जगन्नाथ रथयात्रा
जगन्नाथ रथ यात्रा के संदर्भ में कई कथाएं जनमानस में प्रचलित हैं, एक कथा के अनुसार एक बार देवी सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण और बलराम से नगर दर्शन की इच्छा प्रकट की, जिसे पूरी करने के लिए तीनों रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकले, तभी से प्रति वर्ष रथयात्रा का आयोजन होता है। एक अन्य कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा ने श्रीकृष्ण, बलराम तथा सुभद्राजी की काष्ठ मूर्तियां एक ब्राह्मण वेशधारी विश्वकर्मा से बनवाईं। राजा ने भगवान के विग्रह स्वरूप को रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया, भव्य प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान से पूजन किया। राजा की श्रद्धा भक्ति को देखकर भगवान विष्णु ने राजा को प्रत्यक्ष दर्शन दिए, जिसके फलस्वरूप राजा अनादिकाल से अपने उपर चढ़े हुए पापों को त्याग कर मृत्यु उपरांत मोक्ष को प्राप्त हुआ।