​Jagannath Puri Rath Yatra 2023:जगन्नाथ यात्रा की 5 रहस्यमयी बातें, इसलिए मजार पर रुक जाता है भगवान का रथ

Rath Yatra 2023: विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा जगन्नाथ यात्रा 20 जून से प्रारंभ होने वाली है। हर वर्ष भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन निकाली जाती है और शुक्ल पक्ष के ग्यारहवें दिन समाप्त होती है। दस दिवसीय रथ यात्रा का कार्यक्रम किसी त्योहार से कम नहीं होता है। इस रथ यात्रा में देश विदेश से लाखों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा भी होती हैं और तीनों के लिए अलग अलग रथ निर्मित किए जाते हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बलरामजी का रथ, उसके बाद देवी सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का रथ होता है। आज हम आपको भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में होने वाली ऐसी पांच बातों के बारे में बताएंगे, जो आज भी चौंका देने वाली होती हैं…

यहां पर आकर रुक जाती है रथयात्रा

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा ढोल नगाड़ों की थाप के साथ निकाली जाती है और उत्सव जैसा माहौल होता है। रथ यात्रा एक मजार पर आकर रुक जाता है। यहां तीनों रथ कुछ देर रुकते हैं और मजार के पास मकबरे में शांति से विश्राम करने वाले आत्माओं को याद करते हैं और उसके बाद रथ अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ जाता है। दरअसल इसके पीछे एक रोचक कथा है। कथा के अनुसार, भगवान जगन्नाथ का एक सालबेग नाम का मुसलमान भक्त था। सालेबाग की माता हिंदू और पिता मुसलमान थे। मुसलमान होने की वजह से सालबेग को जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल नहीं होने दिया जाता था और न ही मंदिर में प्रवेश मिलता। सालबेग की अनन्य भक्ति से भगवान जगन्नाथ बेहद प्रसन्न हुए। एक बार रथयात्रा के लिए जब मथुरा से जगन्नाथ पुरी सालबेग आ रहे थे तो रास्ते में बहुत बीमार हो गए। सालबेग ने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की, एक बार अपना दर्शन और रथयात्रा में शामिल होने का अवसर दें। बताया जाता है कि जब रथ सालबेग की कुटिया के पास से गुजर रहा था तो वहां आकर रुक गया और लाख कोशिशों के बाद भी टस से मस नहीं हुआ। बाद में सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की फिर रथ आगे आराम से बढ़ गया। तभी से परंपरा चली आ रही है कि कुछ समय तक सालबेग की मजार के पास रथ रुकेगा और फिर मौसी के घर गुंडीचा मंदिर के लिए रथ का पहिया आगे बढ़ता है।

इस तरह तैयार होते हैं तीनों रथ

रथ यात्रा के लिए जो रथ बनाया जाता है, उसका काम अक्षय तृतीया से शुरू हो जाता है। रथ बनाने के लिए नीम और हांसी के पेड़ों की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। तीन रथों को बनाने में 884 पेड़ों का प्रयोग किया जाता है। पुजारी जंगल जाकर पेड़ों की पूजा करते हैं, जिनका प्रयोग रथ के इस्तेमाल के लिए किया जाता है। पूजा के बाद सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ों को कट लगाया जाता है। इस कुल्हाड़ी को पहले भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श करवाया जाता है। सोने की कुल्हाड़ी से पेड़ों पर कट लगाने का काम महारणा द्वारा किया जाता है।

यहां सात दिन तक रुकते हैं भगवान जगन्नाथ

जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने के बाद गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। गुंडीचा मंदिर का गुंडिचा बाड़ी भी कहा जाता है। यह भगवान की मौसी का घर है। यहां भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा सात दिनों तक विश्राम करते हैं। गुंडिचा मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आड़प दर्शन कहा जाता है। गुंडीचा बाड़ी के बारे कहा जाता है कि यहीं पर देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलराम और देवी सुभद्रा की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की भक्त थीं। मान्यता है कि भक्ति का सम्मान करते हुए भगवान हर साल उनसे मिलने के लिए आते हैं।

हेर पंचमी का यह है महत्व

जगन्नाथ रथ यात्रा के तीसरे दिन यानी पंचमी तिथि को हेरा पंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन माता लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ को खोजने के लिए आती हैं, जो मंदिर छोड़कर भ्रमण पर निकल गए हैं। तब द्वैतापति दरवाजे को बंद कर देते हैं, जिससे माता लक्ष्मी नाराज हो जाते हैं और रथ का पहिया तोड़ देती हैं। इसके बाद ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक एक मोहल्ले में चली जाती हैं, जहां देवी लक्ष्मी का मंदिर है। बाद में भगवान जगन्नाथ द्वारा नाराज देवी को मनाने की भी परंपरा है।

इसे कहते हैं बहुड़ा यात्रा

रथ यात्रा एक सामुदायिक आनुष्ठानिक पर्व होता है। इस मौके पर घरों में कोई पूजा नहीं होती है और ना ही किसी तरह का उपवास रखा जाता है। साथ ही यहां एक चीज यह भी देखने को मिलती है कि यहां किसी भी प्रकार का जातिभेद नहीं किया जाता। जगन्नाथ मंदिर वापस पहुंचने तक सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं। आषाढ़ मास की दशमी तिथि को जब रथ मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं तब रथों की वापसी की इस यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं। मंदिर के द्वार एकादशी के खोले जाते हैं, तब विधिवत स्नान करवा कर ही पुनः: प्रतिष्ठित किया जाता है।