यहां लक्ष्मी नहीं करतीं वास
वास्तु और आध्यात्मिक सिद्धांत कहते हैं कि जिस घर के ईशान्य कोण में अग्नि हो, आग्नेय में जल हो, दक्षिण पश्चिम में खिड़की दरवाज़े हों, ईशान्य कोण में गंदगी हो अथवा वह भारी वस्तुओं से भरा हो, ईशान्य में फ्रिज या बिजली का मेन स्विच हो, उत्तर और पूर्व दीवारों में दरवाजे खिड़कियां बिलकुल न हों, उत्तर-पूर्व कोना कटा हुआ हो, जहां महात्माओं और वरिष्ठ जनों की इज्जत नहीं होती हो, जहां लोग बार-बार थूकते हों, जहां बात-बात में नाराज हो जाते हों, वहां लक्ष्मी वास नहीं करती हैं।
दरिद्रता का नाश
मान्यताओं के अनुसार, दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के बाद घर के सभी कमरं में घंटी और शंख का गुंजन कष्ट, शोक, तनाव, नकारात्मक ऊर्जा और दरिद्रता का नाश करता है।
कर्ज कब लें, कब नहीं
मान्यताओं के अनुसार मंगलवार, हस्त नक्षत्र के साथ रविवार, संक्रांति या वृद्धि योग हो तो ऋण कदापि न लें, अन्यथा कर्ज़ के भवसागर में आकंठ डूब जाएंगे। मंगलवार को उधार लिया गया धन नष्ट हो जाता है, उसे लौटा पाना असंभव सा हो जाता है। यदि ऋण चुकाना हो, तो मंगलवार का दिन सर्वश्रेष्ठ है। अमावस्या, व्यतिपात, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, कृतिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा भाद्रपद, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र, भद्रा तथा बुधवार के दिन किसी को उधार न दें। इस दिन उधार दिया हुआ धन वापस नहीं लौटता। या तो डूब जाता है, या विवाद का पर्याय बन जाता है।
दिवाली की रात, अज्ञानता का नाश
शत्रु के उन्मूलन का ये विचार महज़ हमारी कामनाओं का प्रतिबिंब है। ये एक काल्पनिक खयाल है, जिसके सूत्र हमारी नीयत, मंशा और विचारों में बुने हुए हैं। नकारात्मक बीजों से सकारात्मक फलों की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतएव, शत्रुओं को नहीं शत्रुता को मिटाना ही कारगर है। शत्रुता को नष्ट करने के लिए क्षमा से बेहतर कोई उपाय नहीं है। हम जो भी करेंगे, वह लौटकर हम पर ही आएगा। अत: दिवाली की महानिशा जो अमावस्या के अंधकार को भी जगमगाने की क्षमता रखती है, उसमें मारण प्रयोग की बात सोचना अज्ञानता भी है और भारी भूल भी।
आय व्यय देखने की विधि
अपनी नाम राशि के नीचे लिखे आय-व्यय के अंकों को जोड़िए। जोड़ने के बाद उस में से एक घटाइए और उसके बाद योग में 8 का भाग दीजिए। भाग देने के बाद जो शेष बचेगा, उसका फल इस प्रकार से है
यदि 01 बचे तो उस साल आपकी आय अधिक और व्यय कम होता है। धन जमा भी होगा।
यदि 02 बचे तो उस वर्ष आय-व्यय बराबर-बराबर रहता है।
यदि 03 बचे तो उस वर्ष आय कम और व्यय अधिक होता है। व्यर्थ व्यय से मन खिन्न रहता है।
यदि 04 बचे तो आमदनी के तो नए मार्ग बनते हैं मगर शारीरिक कष्ट और रोगादि पर व्यय होता है।
यदि 05 शेष रहे तो आमदनी बहुत कम होती है मगर खर्चे भी उसी अनुपात में सिकुड़ जाते हैं।
यदि 06 बचता है तो आमदनी नहीं के बराबर होती है। फलस्वरूप उस वर्ष ऋण लेकर काम चलाना पड़ता है।
यदि 07 बचे तो अकस्मात सट्टे, लॉटरी से या अन्य अनियोजित मार्गों से बड़ी मात्रा में धन-लाभ होता है।
यदि 08 या 0 बचे तो आमदनी अच्छी होने से उत्साह में अनियंत्रित व्यय भी होता है।
उदाहरणः– जैसे मनीषा की राशि सिंह होती है, जिसमें आय 14 और व्यय 2 है। दोनों का योग 16 हुआ। इसमें से 01 घटाने पर 15 शेष बचता है, इसमें 08 का भाग देने पर 7 शेष रहा। यानि अकस्मात सट्टे, लॉटरी या अन्य अनियोजित मार्गों से बड़ी मात्रा में धन-लाभ होगा।