मुलायम चंद अब खादी के कपड़े पहनने लगे। उन्होंने अपनी दुकान पर कई अखबार मंगवाने शुरू कर दिए। शाम के समय दुकान पर साथियों का जमावड़ा लगने लगा। सभी अखबारों में क्रांति की खबरें पढ़ते और उन पर चर्चा करते। खूब गर्मागर्म बहसें होतीं और भविष्य की योजनाएं बनतीं। कुछ ही दिन बाद यह बात अंग्रेज पुलिस की नजरों में आ गई। एक रात अचानक पुलिस मुलायम चंद को पकड़ कर ले गई और उन्हें जेल में बंद कर दिया। बाद में पता चला कि एक आदमी पुलिस को चकमा दे रहा था और उसकी शक्ल मुलायम चंद से मिलती थी। इसलिए पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया था। फिर भी पुलिस उन्हें कहां छोड़ने वाली थी। पुलिस ने बर्बरतापूर्वक उनकी पिटाई की, उन्हें घोर यातनाएं दी गई, यह क्रम लगातार नौ दिनों तक चला।
जब उन्हें छोड़ा गया तो उनका शरीर इस योग्य नहीं रह गया था कि वह चल-फिर सकें। वह चबाकर खाना नहीं खा पाते थे। पेशाब में निरंतर खून आने लगा था। शरीर उठने-बैठने में असमर्थ हो चुका था। एक महीने तक इसी तरह वह जिंदगी और मौत से जूझते रहे। परिवार, मित्रों, समाज के वरिष्ठ व्यक्तियों और डॉक्टरों के भरसक प्रयास के बाद भी मुलायम को बचाया नहीं जा सका और 1943 की शुरूआत में आजादी का यह दीवाना 18 वर्ष की आयु में ही आजादी-आजादी कहते हुए शहीद हो गया।– संकलन: रमेश जैन