हिंदुस्तानियों ने आजादी के लिए सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लड़ाई लड़ी

संकलन: अमित वर्मा
1914 में जब प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ा तो गदर पार्टी ने मौके का फायदा उठाने की सोची। पार्टी की स्थापना साल भर पहले ही हुई थी। जंग छिड़ने के बाद गदर पार्टी के प्रमुख नेता लाला हरदयाल को यह लगा कि अब हालात ऐसे हैं कि अंग्रेजों से भारत छीना जा सकता है। उन्होंने दुनिया के कई देशों से मदद जुटाई। उस वक्त गदर पार्टी के दूसरे नेता परमानंद अमेरिका से वापस आ रहे थे। लाला हरदयाल ने पं. परमानंद को सिंगापुर में रुककर भारतीय सैनिकों से मिलने और उन्हें देश के बारे बताने के लिए कहा। पं. परमानंद तब गदर पार्टी के बेहद ओजस्वी वक्ता माने जाते थे।

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उस वक्त सिंगापुर में तीन हजार भारतीय सैनिक मौजूद थे, जिन्हें फिरंगी अपनी जंग लड़वाने के लिए लेकर गए थे। सबको खबर की गई, तीन हजार सैनिक इकट्ठा हुए और बैठक मेल-मिलाप सभा में बदल गई। पं. परमानंद बोले, ‘अंग्रेजों ने सन ’57 की क्रांति के बाद पटना से लेकर दिल्ली तक तुम्हारे पूर्वजों को उलटा लटकाकर मारा। उस जंग में तुम्हारे पूर्वजों के बलिदान में भारत माता को आजाद कराने की जो अभिलाषा थी, वह तुम्हारे दिल में दोगनी-तिगुनी होकर दिखनी चाहिए। अगर तुममें तुम्हारे पूर्वजों की भावानाएं नहीं हैं, तो मैं तो यही कहूंगा कि अब तुम्हारे खून में वह शुद्धता नहीं रही।’ परमानंद लगभग बीस मिनट तक बोलते रहे।

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उस ओजस्वी भाषण का असर यह हुआ कि तीन हजार सैनिकों की उस सभा ने वहीं बगावत का एलान कर दिया। उस दिन जगह-जगह हुई भिड़ंत में 600 गोरे सैनिक मारे गए। फिर हिंदुस्तानी सैनिकों ने सिंगापुर किले पर आजादी का पहला झंडा फहराया। इस पर भारत का नक्शा बना हुआ था। यह झंडा भारत से ही आया था। सच है कि हिंदुस्तानी अपनी आजादी के लिए सिर्फ भारत में ही नहीं लड़े हैं। उन्होंने विदेशी जमीन पर भी अपना खून बहाया है।