पं. श्रीराम शर्मा आचार्य, शांतिकुंज (हरिद्वार)
जब तक मनुष्य अपनी भीतरी अवस्था का ध्यानपूर्वक विचार नहीं करता और अपने भीतरी शत्रुओं अर्थात् क्रोध, स्वार्थ, चिन्ता, निराशा, संताप को काबू में नहीं करता, जीवन से निराश एवं क्षुद्र वासनाओं को मन-मन्दिर में से नहीं निकाल देता, तब तक वह पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता। अनिष्ट मनोभावों से मुक्ति ही उत्तम स्वास्थ्य का रहस्य है।
जितना ही मनुष्य स्वार्थपरता को छोड़ेगा और अलौकिक बुद्धि, जो बल और योग्यता प्रदान करती है को विकसित करेगा उतना ही उसके महान सामर्थ्य जागृत होंगे। अंतर्मन की गुप्त शक्तियां प्रकट होंगी। अन्तःकरण में कोई भी विचार दृढ़ता से जमाने पर वे मस्तिष्क में दृढ़ता से अंकित हो जाते हैं।
इसके विपरीत अति क्रोध, शोक, चिन्ता से मन की शक्तियों का ह्रास होता है। जब तुम अपने आपको कोसते हो, अनिष्ट मनोभाव के वशीभूत हो जाते हो, चिन्ता करते हो, भयंकर व्याधियों को न्योता देते हो तो ऐसे अपने रक्त को अशुद्ध बना देते हो। तुम्हारे गिरते स्वास्थ्य का कारण तुम्हारे अन्तःकरण की दुर्बलता है। नीच स्थिति ही तुम्हारे अतुल सामर्थ्यों का नाश कर रही है।
हम नित्य प्रति के जीवन में अपने मनोभावों के अनुसार, अपनी कार्योत्पादक शक्ति को बढ़ाते या पंगु करते रहते हैं। यदि हम सदा पूर्ण स्वास्थ्य, सुख, शान्ति का आदर्श सन्मुख रखकर उत्तम स्वास्थ्य के लिए प्रयत्नशील हों और यह समझते रहें कि सर्वशक्तिमान परमात्मा के अंश होने से हम आत्मा हैं, तो हमें स्वस्थ रहने के लिए वह शक्ति प्राप्त हो जाएगी, जो हमारे अन्तःकरण की निम्न भूमिका में स्थित रोग सम्बन्धी भ्रान्तियों को कमजोर कर देगी।
क्षुद्र मनोभाव से हम अपने स्वास्थ्य को दुर्बल कर डालते हैं। भ्रम व चिन्ता हमें कहीं का भी नहीं छोड़ती है। हमें चाहिए कि अपने मन से अप्रीतिकर अस्वास्थ्यकर और बुढ़ापे के विचारों को हटाने का अभ्यास करें, जीवन के कलुषित एवं कष्ट साध्य उपकरणों पर कल्पना को न भड़कने दें, अपने विषय में गर्हित चित्रों की छाया मन में न प्रवेश होने दें। आप अपने जीवन में जो कुछ भी करें, जिस ओर अग्रसर हों, अपने मनोभाव उत्तम रखिए और उन्हें केवल उच्च भूमिका में ही विचरण करने दीजिए।