सिर पर मोर मुकुट क्‍यों धारण करते हैं वासुदेव, इसके पीछे है यह रोचक कथा

पौराणिक काल के रोचक किस्‍से यूं तो पढ़ने में कहानी जैसे लगते हैं, लेकिन ये हम सबको कुछ न कुछ सबक जरूर देकर जाते हैं। ऐसा ही रोचक किस्‍सा हम आपको बताने जा रहे हैं जो कि भगवान राम और कृष्‍ण दोनों से जुड़ा है। कहानी भगवान कृष्‍ण के मोर मुकुट को लेकर है। आखिर क्‍यों वासुदेव अपने सिर पर मुकुट में मोर पंख धारण करते हैं। इसका संबंध उनके पिछले अवतार भगवान राम से है। आइए जानते हैं इस कथा के बारे में विस्‍तार से…

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एक बार की बात है वनवास के दौरान माता सीताजी को प्यास लगी, तभी श्रीरामजी ने चारों ओर देखा, तो उनको दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिख रहा था। फिर उन्‍होंने प्रकृति से प्रार्थना की, हे वन देवता आसपास जहां कहीं पानी हो, वहां जाने का मार्ग कृपा कर सुझाइए। तभी वहां एक मयूर ने आकर श्रीरामजी से कहा कि आगे थोड़ी दूर पर एक जलाशय है। चलिए मैं आपके मार्ग का पथ प्रदर्शक बनता हूं, किंतु मार्ग में हमसे भूल-चूक होने की संभावना है।

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भगवान राम ने मयूर से पूछा कि आप ऐसा क्‍यों कह रहे हैं ? तब मयूर ने उत्तर दिया कि मैं उड़ता हुआ जाऊंगा और आप चलते हुए आएंगे, इसलिए मार्ग में, मैं अपना एक-एक पंख बिखेरता हुआ जाऊंगा। उसके सहारे आप‌ जलाशय तक पहुंच ही जाओगे।

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जबकि ऐसा माना जाता है कि मोर के पंख एक विशेष समय में एवं एक विशेष ऋतु में ही गिरते हैं। मोर यदि अपनी इच्छा विरुद्ध पंखों को बिखेरेगा, तो उसकी मृत्यु हो जाती है। भगवान को मार्ग दिखाने वाले मोर के साथ भी ऐसा ही हुआ। अंत में जब मयूर अपनी अंतिम सांस ले रहा होता है, तब उसने मन ही मन में कहा कि वह कितना भाग्यशाली है, कि वे प्रभु जो जगत की प्यास बुझाते हैं, ऐसे प्रभु की प्यास बुझाने का उसे सौभाग्य प्राप्त हुआ। मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मेरी कोई भी इच्छा शेष नहीं रही।

तभी भगवान श्रीराम ने मयूर से कहा कि मेरे लिए तुमने जो मयूर पंख बिखेरकर, अपने जीवन का त्यागकर मुझ पर जो ऋण चढ़ाया है, मैं उस ऋण को अगले जन्म में जरूर चुकाऊंगा। कहा जाता है कि जब भगवान राम ने कृष्‍णजी के रूप में अगला अवतार लिया और अपने सिर पर मोर पंख धारण किया और अपने वचन अनुसार उस मयूर का ऋण उतारा था। पौराणिक काल का यह रोचक किस्‍सा हमें इस बात की सीख देता है कि यदि कोई बुरे वक्‍त में हमारी मदद करता है तो हमें उसका ऋण कभी भूलना नहीं चाहिए।

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