सम्राट अशोक की तरह आप भी इस तरह प्राप्त कर सकते हैं मानसिक शांति

प्रस्तुति: रमेश जैन
पाटलिपुत्र में बिंदुसार ने अशोक को मौर्य साम्राज्य का सम्राट घोषित किया, तो उसका बड़ा भाई तक्षशिला का राजा सुसीम उस पर आक्रमण करने आ गया। अशोक ने उसे मौत के घाट उतार दिया। तब सुसीम की पत्नी सुमना गर्भवती थीं। उनकी दासी ने उन्हें गुप्त मार्ग से जंगल पहुंचा दिया। जंगल में ही सुमना ने एक पुत्र को जन्म दिया। न्यग्रोध वृक्ष के नीचे जन्म लेने के कारण उसका नाम न्यग्रोध रखा गया। छोटी उम्र में ही वह बौद्ध भिक्षु बन गया।

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उसके बाद कलिंग विजय के लिए अशोक ने भयंकर युद्ध लड़ा। युद्ध में भीषण रक्तपात से उसका मन आत्मग्लानि से भर गया। एक दिन उसने एक भिक्षु को जाते देखा। उसका मन भिक्षु की ओर खिंचा चला गया। उसने प्रहरी से कहकर भिक्षु को बुलवाया और पूछा, ‘आप कौन हैं?’ भिक्षु ने कहा, ‘मैं बौद्ध भिक्षु हूं। मेरा नाम न्यग्रोध है।’ नाम सुनकर अशोक चौंक पड़ा और बोला, ‘यह तो मेरे भाई के पुत्र का नाम है।’ भिक्षु ने शांत भाव से उत्तर दिया, ‘हां, मैं आपका भतीजा ही हूं।’ अशोक ने पूछा, ‘क्या तुम मुझसे घृणा करते हो?’ भिक्षु बोला, ‘मैं आपसे घृणा नहीं करता। घृणा संहारक होती है। उसे प्रेम से जीतना चाहिए।’

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अब अशोक के मन में तूफान उमड़ पड़ा। उसने पश्चाताप भरे स्वर में पूछा, ‘तुमने इतनी छोटी आयु में यह ज्ञान कहां से पाया?’ भिक्षु बोला, ‘भगवान बुद्ध के उपदेशों से। उनसे अशांत मन को शांति मिलती है।’ अशोक बोला, ‘मेरे मन में तनिक भी शांति नहीं है।’ भिक्षु बोला, ‘तो फिर बुद्ध की शरण में आ जाइए, आपका मन शांत हो जाएगा।’ अशोक ने दीक्षा लेने का संकल्प कर अगले दिन अन्य भिक्षुओं को राजमहल बुलाकर भोजन कराया। फिर न्यग्रोध से बौद्ध धर्म की दीक्षा ग्रहण कर शस्त्र त्याग की प्रतिज्ञा की। तब से वह दिन धर्म विजय के नाम से मनाया जाने लगा।