अब तुम लोग ही बताओ कौन त्यागी है। महावीर त्यागी हैं कि तुम। बुद्ध त्यागी हैं कि तुम। असल में तुम ही त्यागी हो क्योंकि कचरे को पकड़े हो। साधारण लोग समाधि के सुख को छोड़ रहे हैं और बेकार की छोटी-छोटी ऐसी घटनाओं में ध्यान लगा रहे हैं जो शुद्ध नहीं हैं। जहां सब कुछ बुरा और बेकार है वो उसे पकड़े बैठे हैं। सांसारिक लोग महात्यागी हैं लेकिन ये लोग संन्यासियों को त्यागी समझते हैं। उनको लगते हैं संन्यासी त्यागी हैं।
सच में तो वे संन्यासियों पर दया करते हैं कि इन बेचारे लोगों का सब छूट गया या इन्होंने सब छोड़ दिया। कुछ भी नहीं भोगा। सांसारिक लोग भीतर से संन्यासियों का सम्मान भी करते हैं लेकिन गहरे मन में दया भी करते हैं। वो समझते हैं कि बेचारे संन्यासी नासमझ हैं और इन्होंने बिना भोगे सब छोड़ दिया। कुछ तो भोग लेते। उन्हें पता ही नहीं कि वो किसके बारे में ऐसा कह रहे हैं। संन्यासी को महाभोग मिल रहा है। अस्तित्व ने उसे महाभोग में आमंत्रित कर लिया है। असल में दुनिया की सबसे बड़ी दौलत और सुख तो संन्यासियों के पास ही है।