संत कबीर की इन बातों का रखेंगे ध्यान तो कभी नहीं होगी गृहस्थ जीवन में तकरार

संकलन: योगेश कुमार गोयल
संत कबीर रोज सत्संग करते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी वहां बैठा रहा। कबीरदास ने उससे कारण पूछा तो उसने कहा, ‘महाराज, मैं एक गृहस्थ हूं। परिवार में सभी से मेरा झगड़ा होता रहता है। मुझे समझ नहीं आता कि आखिर मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?’ संत कबीर कुछ देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘जरा लालटेन जलाकर लाओ!’ दोपहर का समय था, लेकिन उनकी पत्नी लालटेन जलाकर ले आईं।

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यह देखकर वह आदमी हैरान होकर सोचता रह गया। कुछ देर बाद कबीरदास ने फिर पत्नी को आवाज लगाई और बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’ पत्नी आईं और मीठे के बजाय नमकीन रखकर चली गईं। अब वह व्यक्ति सोचने लगा कि संत और इनकी पत्नी शायद पागल हैं, तभी दोपहर को लालटेन जलाते हैं और मीठे के बदले नमकीन आता है। यह सोचकर वहां से खिसकने के इरादे से वह बोला, ‘महाराज, मैं अब चलता हूं।’ कबीरदास ने उससे पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी भी कोई संशय शेष है?’

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अब तो वह और भी हैरानी से उनकी ओर देखने लगा। संत कबीर ने उसे समझाया, ‘मैंने दोपहर में भी लालटेन मंगवाई, तो मेरी पत्नी मुझे ताना मार सकती थीं कि मैं सठिया गया हूं। लेकिन उन्होंने सोचा कि जरूर मुझे किसी काम के लिए लालटेन चाहिए होगी। मीठा मंगाने पर जब नमकीन आया, तो मैं भी बहस कर सकता था। लेकिन मैंने सोचा कि शायद घर में कुछ मीठा होगा ही नहीं। आखिर गृहस्थ जीवन में ऐसी बातों को लेकर तकरार का क्या अर्थ?’ कबीरदास ने उसे गृहस्थ जीवन का मूल मंत्र समझाते हुए कहा कि गृहस्थी में आपसी विश्वास से ही तालमेल बनता है, नहीं तो हमेशा झगड़े होते रहते हैं।