ग्रहण के समय भी होते हैं दर्शन
राजस्थान में स्थित नाथजी के भव्य स्वरूप के दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं और मनोकामना मांगते हैं। श्रीनाथजी का मंदिर दिन में आठ दर्शनों के लिए खोला जाता है और आठ दर्शनों की आठ आरती भी होती हैं। साथ ही हर दर्शन के लिए समय भी निर्धारित है। श्रीनाथजी का मंदिर एक मात्र मंदिर है, जो सूर्य ग्रहण के समय भी खुला रहता है। यहां परंपरा है कि ग्रहण के समय कई दर्शन कर सकते हैं और बाकी सारी पूजा पाठ की सभी सेवाएं बंद कर दी जाती हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी पर 21 तोपों की दी जाती है सलामी
नाथजी मंदिर में जन्माष्टमी का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां कृष्ण जन्म के समय 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इस नजारे को देखने के लिए देश दुनिया से कई लोग आते हैं। इस दिन पूजा ब्रज जैसा नजारा देखने को मिलता है। अंबानी परिवार की भी नाथजी के मंदिर में गहरी आस्था है। यही कारण है कि मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी और उनकी मंगेतर राधिका मर्चेंट की सगाई इसी मंदिर में हुई थी।
नाथजी मंदिर का इतिहास
औरंगजेब के आदेश पर भारत में कई मंदिरों को तोड़ा जा रहा था। उसी समय मथुरा में स्थित नाथजी के मंदिर को तोड़ने की प्रकिया शुरू हुई थी। इससे पहले औरंगजेब के सिपाही भगवान की मूर्ति को तोड़ते मंदिर के पुजारी दामोदरदास बैरागी मूर्ति को मंदिर से बाहर निकाल लाए। दामोदरदास वल्लभ संप्रदाय के थे और वल्लभाचार्य के वंशज थे। पुजारी ने बैलगाड़ी में मूर्ति को छिपाकर रख लिया और मथुरा से बाहर वृंदावन पहुंच गए।
राणा राजसिंह ने दी औरंगजेब को चुनौती
पुजारी दामोदरदास ने कई राजाओं से नाथजी का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित करने का आग्रह किया था लेकिन औरंगजेब के डर से मना कर दिया। तब पुजारी मेवाड़ के राजा राणा राजसिंह के पास संदेश पहुंचाया। क्योंकि केवल तब तक राणा राजसिंह ही औरंगजेब को चुनौती दे चुके थे। राणा राजसिंह ने पुजारी की बात मान ली और औरंगजेब को चुनौती दी कि अगर तुम्हारे किसी सिपाही तक ने इस मूर्ति को छूने की कोशिश की तो एक लाख राजपूतों से निपटना होगा।
इस तह वृंदावन से चले पुजारी
बैलगाड़ी में ही मूर्ति रखकर पुजारी वृंदावन से राजस्थान के लिए निकल लिए। सबसे पहले जोधपुर के चौपसनी गांव पहुंचे और यहां कई दिन तक बैलगाड़ी खड़ी रही और बैलगाड़ी में ही भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना की गई। जहां बैलगाड़ी खड़ी थी, वहां आज एक मंदिर बना हुआ है और भगवान नाथजी की चरण पादुकाएं उस समय से आज तक मंदिर में रखी हुई हैं। उस स्थान को चरण चौकी के नाम से जाना जाता है।
राजा ने कराई मूर्ति की स्थापना
चौपसनी गांव से श्रीनाथजी की मूर्ति को सिहाड़ लेकर आया गया। मूर्ति का स्वागत करने के लिए राजा स्वयं सिहाड़ गांव पहुंचे थे। सिहाड़ गांव उदयपुर से 30 मील और जोधपुर से 140 मील की दूरी पर स्थित है, जिसे आज नाथद्वार के नाम से जाना जाता है। राणा राजसिंह ने फरवरी 1672 में मंदिर का निर्माण पूरा करवाया और फिर नाथजी की मूर्ति की स्थापना करवाई गई।
ऐसा है श्रीनाथजी का स्वरूप
मंदिर में श्रीनाथजी की मूर्ति काले संगमरमर के पत्थर से बनी हुई है। श्रीनाथजी का स्वरूप गोवर्धन पर्वत उठाए बालकृष्ण का है। जिनका बायां हाथ हवा में उठा हुआ है और दाहिने हाथ की मुट्ठी को कमर पर टिकाया हुआ है। भगवान के स्वरूप के साथ एक शेर, दो गाय, तोता, मोरा और तीन ऋषि मुनियों का चित्र बना हुआ है। भगवान के होठों के नीचे एक हीरा भी लगा हुआ है। जनश्रुति में बताया जाता है कि यह हीरा औरंगजेब की मां ने दिया था।