जनमाष्टमी रहस्य – जन्माष्टमी के रहस्य समझने के लिए खगोलीय सिद्धांतों को जानना बेहद जरूरी है। खगोलशास्त्र के अनुसार पूर्णिमा और अमावस्या के बीच की दूरी अष्टमी तिथि से जानी जाती है, प्रत्येक पक्ष में अष्टमी मध्य भाग को दर्शाती है। भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को चन्द्रमा आधा राधामय एवं आधा कृष्णमय हो जाता है। पूर्णिमा को शुक्ल भाग, प्रकाशमान भाग, दिखाई देता है लेकिन पृष्ठ भाग अदृश्य कृष्ण है, अमावस्या को दृश्य भाग कृष्ण है, अदृश्य ही राधा है। जब भाद्रपद मास में राधा-कृष्ण रूपी अष्टमी को चन्द्रमा आकाश में आता है तब दुःखों की शक्ति का शमन एवं सुखों की शक्ति का पोषण करने वाली शक्ति पुंज रूपी प्रकाश उर्जा पृथ्वी पर फैलती है, इसलिए जन्माष्टमी पर व्रत, पूजन, आराधना करने वालों का दुःख, सुख में परिवर्तित हो जाता है।
कृष्ण का पूर्ण स्वरूप राधा के बिना अधूरा है, राधा ही कृष्ण की सिद्धि हैं, इसलिए खगोलीय दृष्टि से चन्द्रमा का प्रकाशमान भाग ही राधा है और अंधकारमय काला भाग ही कृष्ण है। कृष्ण की कल्याणकारी उर्जा एवं अलौकिक आनन्द को प्राप्त करने के लिए भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को अर्द्धरात्रि के शुभ मुहूर्त में श्री कृष्ण जन्म, दूध, दही, घी, शहद, शक्कर से बने पंचामृत से स्नान आदि कराया जाता है। नवग्रहों को अनुकूल कर जीवन में सुख के संचार के लिए विधि-विधान पूर्वक किया गया कृष्ण पूजन अर्द्धरात्रि में लौकिक एवं पारलौकिक प्रभावों को संतुलित करने में बड़ी भूमिका निभाता है।