शिव-शक्ति के योग के पर्व के रूप में मनाया जाता है महाशिवरात्रि का त्योहार

शिव के अनेक रूपों का वर्णन मिलता है। अनंत नामों और रूपों में शिव अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं। दूसरी ओर जब सृष्टि संचालन का जिक्र आता है, तो वही शिव अपने सहयोगी ब्रह्मा, विष्णु के साथ अपने रौद्र, विकराल, प्रलयंकारी अन्तः को कँपा देने वाले देव के रूप में सामने आते हैं और कठोर हृदय होकर न्याय करते देखे जाते हैं। इन सबके अतिरिक्त शिव का एक दयालुता, करुणा, प्रेम, अनुदान-वरदान दाता, भोले भण्डारी का रूप भी है जो उन्हें सबसे अलग ही रूप से प्रस्तुत करता है। इसी रूप में वे अपने हर भक्त की माँगें पूरी करते, वरदान देते, सुख-संसाधन लुटाते तथा विपत्तियों से बचाते रहते हैं। विशेष प्रकार के सिद्धाकांक्षी योगी, यतियों, उग्र व जटिल पद्धतियों के साधकों की बात छोड़ दें, तो आम भावनाशील भक्त शिव जी के इसी रूप की पूजा-उपासना करते पाए जाते हैं।भगवान शंकर के इन दोनों विरोधाभासी रूपों को देखकर भक्त गण कभी-कभी इसके कारण पर विचार करते होंगे कि कठोर दण्ड के पक्षधर भगवान् शंकर इतने दयालु, करुणानिधान, परम शान्त कैसे हो सकते हैं? वे ऐसे अघड़दानी हैं कि अपने विरोधी-बैरियों को भी फलने-फूलने, सुखी रहने का वरदान दे बैठते हैं। इस दयालुता, करुणा के पीछे माता पार्वती जी की भी भूमिका कम नहीं रहती है। वे कभी-कभी भक्त के प्रति इतने दयावान हो उठती हैं कि उसे देखकर भगवान शंकर जी भी पसीजे बिना नहीं रह पाते। उन्हें उसकी मांग पूरी करनी ही पड़ती है क्योंकि दोनों के रूप दो हैं, पर आत्मा एक है। इसलिए प्रति वर्ष करोड़ों नर-नारी शिव-शक्ति के महामिलन रूप महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर शंकर-पार्वती जी के इसी संयुक्त रूप की, पूजा करते हैं।शिवजी को अक्षत चढ़ाने का यह है लाभ, जानें किन चीजों से पूजा का क्या होता है लाभ

संहार, संतुलन, करुणाप्रसाद, अनुग्रह दाता व शमन-संयमनकर्त्ता आदि अनेक संज्ञा-संबोधनों से भगवान शिव जी संबोधित किए जाते हैं। वैसे वह सदा योग में ही रमे रहते हैं जिसके कारण उनकी मूल प्रवृत्ति अनुशासित व सौम्य मानी गई है। रौद्र रूप वह तब धारण करते हैं जब आसुरी प्रवृत्ति के लोग मर्यादाओं की सीमा लांघने लगते हैं जिसके चलते औरों को दुःख परेशानियों का सामना करना पड़ता है, तब उनका दमन-शमन जरूरी हो जाता है। ऐसे वक्त वह इतना उग्र हो जाते हैं कि उनके तेज से समग्र संसार ही प्रभावित होने लगता है। अर्थात अन्याय को वह बिलकुल ही सह नहीं पाते। उनके इस स्वरूप से हमें प्रेरणा मिलती है कि अन्याय-अनीति के आगे कभी नहीं झुकना चाहिए। चाहे जान बाजी पर लग जाए, पर न्याय पक्ष को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। बाकी वे शांत-सौम्य मूर्ति हैं। वे दयालु भी कम नहीं। उनके द्वार पर जो भी याचक आता है, बिना कुछ लिये खाली हाथ नहीं लौटाते।

वह अपरिग्रह का मूर्तिमन्त स्वरूप हैं। त्याग, वैराग्य में सबसे आगे हैं। योग-तप में सदा लीन रहते हैं। उनकी यह प्रवृत्ति संसार को त्याग-वैराग्य में, योग-तप में प्रवृत्त होने की प्रेरणा देती है। भगवा शंकर जी ज्ञान-विज्ञान, योग-तन्त्र, संगीत-कला, शासन क्षमता, रण-नीति आदि सभी विधाओं में दक्ष हैं। उनकी पूजा-उपासना करने का अर्थ उनकी उन्हीं सब गुणों को अपने अन्दर विकसित करने का प्रयत्न करना चाहिए। वे समन्वय-सामञ्जस्य नीति के सूत्रधार कहे जा सकते हैं; क्योंकि वे सभी प्रकृति के लोगों को साथ लेकर चलते हैं। उनके गणों में सभी प्रकृति के लोग हैं। उनकी महिमा ऐसी है कि शेर-बैल, सर्प-चूहा साथ-साथ रहते हैं। अर्थात् उनकी संगति में आने, उनकी पूजा करने का अर्थ है कि शत्रुता की दुष्प्रवृत्ति को त्याग देना चाहिए। वे जैसे अमृत और जहर साथ-साथ ही रखते हैं, वैसे ही हर्ष-विषाद, सुख-दुःख, मंगल-अमंगल, लाभ-हानि आदि में समरस रहना चाहिए। शायद उनकी इसी विशेषता के कारण है कि लोग और देवताओं की अपेक्षा उन्हें देवाधिदेव महादेव के नाम से पुकारते है और ज्यादा सम्मान देते हैं।

Mahashivaratri 2020: भगवान शिव के अनोखे मंदिर, होती है अजब-गजब पूजामाता पार्वती का शिव जी के साथ योग कोई आसानी से हुआ नहीं है। इसके लिए शिवजी को बहुत मनाना पड़ा। वह ऐसे वीतराग और अपने इष्ट में तल्लीन थे कि माताजी की पुकार उन तक सहजता से पहुंचती ही नहीं थी। इसके लिए ऋषि-महर्षियों, सिद्धों-महासिद्धों, देवताओं-अधिदेवताओं सभी को प्रयत्न करना पड़ा है। संसार के कल्याण का काम आसानी से होता भी कहां? इसके लिए महान तथा समर्थ शक्तियों को भी लगना ही पड़ता है। शिव-शक्ति का योग यदि न हुआ होता, तो महान पारिवारिक आदर्श का प्रस्तुतीकरण संभव ही न होता। तब फिर न गणेश-कार्त्तिकेय जैसे महान विभूतियों का आविर्भाव होता और न ही उस समय के क्रूर, आततायी राक्षसों का संहार संभव होता। ऐसे में धरती का भार भी कैसे हरण होता?यह भगवान शंकर जी का आशीर्वाद ही है कि उन्होंने विश्वहित में परम वैराग्य-वृत्ति से उतर कर राग-रंग की प्रवृत्ति को अपनाया और उसमें थोड़ा-सा शक्ति वर्षण किया जो संसार का महान कल्याण का कारण बना। आज महाशिवरात्रि का पर्व है, अर्थात शिव-शक्ति के महामिलन का पर्व है। आज हमें उनके जीवन आदर्श से प्रेरणा ग्रहण कर अपने जीवन को महान बनाने का संकल्प लेना चाहिए और जब तक लक्ष्य सध न जाए, नहीं रुकना चाहिए, तभी शिवरात्रि का माहात्म्य जीवन में फलित हो सकता है।– डॉक्टर प्रणव पंड्या (लेखक देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के कुलाधिपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख हैं।)

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