डॉ. प्रणव पण्ड्या/शांतिकुंज, हरिद्वार।
मानवीय आस्था-सिद्धांतों, सूत्रों, सलाहों, संकल्पों से इतना प्रभावित नहीं होती, जितना की पर्व की प्रेरणाओं से। भारतीय मनीषियों ने इस तथ्य को गहराई से अनुभव कर पर्व परम्परा का विकास किया है। वैसे भारतीय विरासत का हर दिवस पर्व संस्कार से ओत-प्रोत है और मनुष्यत्व, मुमुक्षत्व बोध से युक्त भी। आश्विन मास की शरद पूर्णिमा पर्व का पर्वों में विशेष स्थान है। इसे शरद कौमुदी अथवा कोजगरा व्रत भी कहा जाता है।
कोजागरा, शरद पूर्णिमा पर्व के संदर्भ में भिन्न-भिन्न वर्ग की अपनी-अपनी मान्यताएं और संकल्प हैं। नारी समाज के लिए यह अखण्ड सौभाग्य, संतान कामना पूर्ति का पर्व है। दुर्बल, रोगी, शारीरिक पीड़ा वाले लोग इस तिथि को आरोग्य प्राप्ति की याचना करते हैं। वैद्य-चिकित्सकगण अमरत्ववर्धक औषधियों की शोध एवं उनसे निर्माण का तंत्र स्थापित करते हैं। दीन-दुःखी जन इस दिन को शांति एवं तन्मयता का अमोघ वरदान प्राप्ति का सुयोग अनुभव करते हैं। सद्गुणी किन्तु धनहीन, अर्थार्थी अपने चरित्र एवं विद्या के सुनियोजन की कला से लक्ष्मी शक्ति के प्राकट्य का मर्म तलाशते हैं।
कार्तिक माह भगवान विष्णु को परम प्रिय है, ईश आराधक इसी दिन जीवन में शक्ति अवतरण के लिए मास भर के यम-नियम के प्रति संकल्पित होता है। आम भावनाशील भक्त शरद पूर्णिमा को रात्रि भर परमशक्ति की आराधना के लिए जागरण करते और अमरत्व की कामना करते हैं, तंत्र साधक इस दिन चंद्र शक्ति को आकर्षित करने के लिए नदी-सरोवर तट पर रात्रि के चौथे प्रहर असंख्य दीप जलाकर साधना करते हैं।
मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में एक सौ आठ बार सुई में धागा पिरोने से आँख की ज्योति बढ़ती है। इसी तरह उत्तर भारतीय लोग खीर पकाकर रात भर ओस में चंद्रमा की रोशनी में रखते हैं तथा प्रातःकाल स्नान-पूजन करके इस भाव से खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं कि चंद्रदेव ने रात्रि में अमृत वर्षा की है, खीर खाने से स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।
वैसे सृष्टि संतुलन में चंद्र और सूर्य का समान महत्त्व है। चंद्रमा शीतलता उत्सर्जित करता है तो सूर्य ऊष्मा। लगभग चार मास से सूर्य तपने से वातावरण उष्णता से भर उठता है, वहीं नवरात्र साधना के दौरान भी साधक में ऊर्जा का भंडार एकत्रित हो चुका होता है। यह ऊर्जा शरीर के ऊपरी कोशों तक ही सीमित होती है, उसे जीवन कोशों तक पहुंचाने के लिए साधक को परम शीतलता की आवश्यकता होती है। पौराणिक मान्यता है कि बारह वर्ष तक शरद पूर्णिमा का व्रत करने से साधक को अमरत्व प्राप्ति होती है।