वास्तु के साथ कुंडली में ग्रह दशा भी महत्वपूर्ण

क्या आपने कभी गौर किया है कि एक ही बाजार में किसी एक छोटी सी दुकान पर दिन भर भीड़ उमड़ती रहती है और उसके ठीक सामने स्थित भव्य शोरूम में मक्खियां उड़ती रहती हैं, आखिर ऐसा क्यों? इन सबके पीछे दो प्रमुख कारण होते हैं, एक, दोनों दुकानदारों के भाग्य को प्रभावित करने वाली ग्रहदशा और दूसरा, दोनों दुकानों का वास्तु।

ज्योतिष का एक हिस्सा, जो भवन निर्माण से संबंध रखता है, वास्तु शास्त्र के नाम से जाना जाता है। ज्योतिष और वास्तु दोनों का एक साथ प्रयोग एवं उपयोग शत-प्रतिशत सफलता दिलाता है। जीवन के हर क्षेत्र में ज्योतिष का महत्व है उसी प्रकार भवन निर्माण या कोई भी निर्माण कार्य ज्योतिषीय गणनाओं के आधार पर ही प्रारम्भ करना शुभ होता है। घर बनाने या पुराने घरों का जीर्णोद्धार करने या किसी भी प्रकार का गृह निर्माण सम्बन्धी कार्य करने में भूमि चयन से लेकर प्रत्येक कार्य व्यक्ति की जन्मकुण्डली के आधार पर करना चाहिए।

उसके ग्रहों के बलाबल आदि का विचार करके कार्य को आरम्भ करना आवश्यक होता है वरना अनेक प्रकार के दोष उत्पन्न हो सकते हैं तथा अनेक व्यवधानों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त व्यक्ति की कुण्डली के आधार पर ही एक कुशल वास्तु शास्त्री घर की कुण्डली का निर्माण करता है जिससे घर की आय तथा आयु आदि का निश्चय होता है। इसलिए वास्तु कार्य करवाने वाले जातक की यदि कुण्डली होती है तो कार्य अधिक अच्छा हो सकता है।

किसी उद्योग की स्थापना करने जा रहे व्यक्ति को सर्वप्रथम अपनी कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को देखना चाहिए। उसकी कुण्डली में यदि कोई ग्रह दोष हो और वह बाधा उत्पन्न करने वाला हो, तो सबसे पहले उसका निदान करना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि किसी व्यक्ति की कुण्डली में कोई ग्रह विशेष फलदायी होता है मगर उसके समक्ष कोई दूसरा ग्रह बाधा बनकर खड़ा हो जाता है। ऐसे में शुभ फलदायी ग्रह भी वांछित फल नहीं दे पाते। यदि किसी औद्योगिक इकाई की स्थापना करनी हो, तो वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन आवश्यक रहता है, लेकिन इन नियमों का क्रियान्वन तभी संभव हो पाता है, जब उस उद्योग के स्वामी की जन्मकुण्डली में उपस्थित दोषों को दूर कर लिया जाए तथा उसके स्वामी की ऊर्जा व चेतना के स्तर में भी वृद्धि हो।

वर्तमान में समाज का एक बड़ा वर्ग वास्तुशास्त्र के साथ ज्योतिषशास्त्र, योग विद्या आदि प्राचीन वैदिक विज्ञान के माध्यम से लाभान्वित हो रहा है। जन्मकुण्डली व्यक्ति के प्रारब्ध का विस्तार है। किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए ज्योतिष तथा वास्तु दोनों का एक साथ प्रयोग होना चाहिए, साथ ही उस कार्य को करने के लिए विशेष मेहनत अर्थात् कर्म का भी विशेष योगदान है। जैसे कन्या का विवाह नहीं हो रहा, तो वास्तु विशेषज्ञ बताते हैं कि विवाह शीघ्र सम्पन्न हो इसके लिए कन्या को वायव्य कोण में सुलाना चाहिए ताकि उसका विवाह शीघ्र अतिशीघ्र हो जाए, यह बात वास्तु शास्त्र के अनुसार शत-प्रतिशत सही है लेकिन अगर जन्म कुण्डली में विवाह का योग ही नहीं होगा तो विवाह कैसे हो सकता है।

अतः वास्तु के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र के माध्यम से जन्म कुण्डली की गणना, जन्मकुण्डली में बनने वाले शुभाशुभ योगों को भी अवश्य देख लेना चाहिए। शीघ्र विवाह के लिए जन्मकुण्डली के अनुसार बाधक ग्रहों का उपाय करें, उचित कर्म करें, तब वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करें तो लाभ निश्चित होगा। व्यापार वृद्धि के लिए वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन जन्मकुण्डली की ग्रहदशाओं के अनुसार किया जाए तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि व्यापार में दिन-दूनी, रात-चौगुनी तरक्की न हो।