वह राजा चोर के समान

जो राजा प्रजा की अच्छी तरह से रक्षा नहीं करता वह चोर के समान है।
वेदव्यास

राष्ट्रीयता तो पुरानी पड़ी हुई सड़ी मिठाई है। छोटी नासमझ चींटियां स्वाद के मोह से उसमें चिपकी रहती हैं। वह बुद्धि के लिए एक मोटा घेरा है। मनुष्य को मनुष्य से दूर रखने का इंद्रजाल है।
रमेश बक्षी

रूढ़ियां कभी धर्म नहीं होतीं। वे एक समय की बनी हुई सामाजिक शृंखलाएं हैं। वे पहले की शृंखलाएं जिनसे समाज में सुथरापन था, मर्यादा थी पर अब जो जंजीरें बन गई हैं।
निराला

लगन को कांटों की परवाह नहीं होती।
प्रेमचंद