लालबहादुर शास्त्री की ईमानदारी की यह मिसाल आपको भी करेगी प्रेरित

उन दिनों लालबहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री थे। उस समय उनके पास उनका एक मित्र आया और बोला, ‘सर, मेरे बेटे की ऊंचाई मात्र आधा इंच कम है, इसलिए उसे थानेदार का पद नहीं मिल पा रहा है। यदि आप उसकी सिफारिश कर दें तो मेरे ऊपर आपका बड़ा अहसान होगा और मेरे बेटे को थानेदार के पद पर नियुक्त कर लिया जाएगा।’ यह सुनकर शास्त्री जी बोले, ‘यदि तुम्हारे बेटे का कद कम है तो उसे थानेदार नहीं बनाया जा सकता। थानेदार की नियुक्ति के लिए जो मुख्य योग्यताएं उसका होना जरूरी है। इस मुख्य योग्यता में निर्धारित कद भी जरूरी है। ऐसे में जब आपके पुत्र का कद कम है तो भला सिफारिश करने से वह थानेदार कैसे बन सकता है?

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शास्त्री जी की बात सुनकर मित्र रुष्ट हो गया और बोला, ‘यह कैसा न्याय है? आप तो स्वयं बहुत ठिगने हैं, फिर भी प्रदेश के गृहमंत्री बने बैठे हैं और मेरे बेटे की ऊंचाई मात्र आधा इंच कम होने से वह थानेदार नहीं बन सकता।’ मित्र की बात सुनकर शास्त्री जी मुस्कुराते हुए बोले, ‘आप ठीक ही कहते हैं। मैं कद का ठिगना हूं, तब भी गृह मंत्री हूं, लेकिन मैं चाहूं तो भी किसी सूरत में थानेदार नहीं बन सकता क्योंकि थानेदार के लिए मांगे गए कद के अनुसार मैं छोटा हूं। इसी तरह आपका बेटा भी छोटे कद का होने के कारण थानेदार नहीं बन सकता। हां, वह गृहमंत्री अवश्य बन सकता है।’

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उन्होंने कहा, ‘अब आप स्वयं बताइए कि जब मैं थानेदार के लिए अपनी सिफारिश नहीं कर सकता तो आपके पुत्र के लिए कैसे कर सकता हूं? मेरी मानो तो आप सिफारिश की बात छोड़कर अपने पुत्र को ऐसा कार्य व पद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करो जिसमें कद की बाधा न हो। सिफारिश की जरूरत भी नहीं पड़ेगी और उसके लिए वह ज्यादा उचित होगा।’ यह सुनकर मित्र लज्जित हो गया और वहां से चला गया।

संकलन : रेनू सैनी