भिक्षु ने याकोहामा तक का टिकट लिया था, लेकिन जहाज को कोबे बंदरगाह पर चार दिन तक रुकना था। अब वह भिक्षु ओसाका शहर देखने निकल गए। वहां से वह होरियोजी बौद्ध मंदिर पहुंचे। यहां जापान का सबसे पुराना बौद्ध मंदिर है, जो कि ईसा की छठी सदी का है। प्रधान मंदिर की दीवार को देख अचानक वह ठिठक पड़े। यहां तो अजंता शैली के चित्र बने थे। मंदिर में अंदर पहुंचे तो ऐसी भारतीय हस्तलिपि सुरक्षित थी, जो शायद भारत में भी नहीं। यह थी हर्षकालीन कोडवर्ड्स की पूरी वर्णमाला। भिक्षु ने अपनी डायरी में यह सब नोट कर लिया।
आखिरकार जहाज 10 मई को याकोहामा पहुंचा। याकोहामा से भिक्षु तोक्यो पहुंचे और वहां से गांवों की ओर निकल गए। जब वह नित्ता गांव पहुंचे तो पाया कि वहां हर ओर देवदार लगे हुए थे। जापानी लोग हिमालय के देवदार पर मुग्ध रहते हैं। कई दिनों तक वहां वह बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन करते रहे। जब गांव से चलने को हुए तो लोगों ने कहा कि वह एक देवदार रोपते जाएं। भिक्षु बोले, ‘यादों पर मुझे बहुत भरोसा तो नहीं, लेकिन कुछ पीढ़ियों के लिए एक सुंदर चीज छोड़ना अच्छी बात है।’ यह देवदार जापान के नित्ता गांव में आज भी खड़ा है, बिलकुल उनके नाम की तरह। भिक्षु का नाम था महापंडित राहुल सांकृत्यायन।– संकलन: विजय मौर्य