पूजा समाप्त होने पर रानी ने पुजारी रामकुमार को भोजन के लिए बुलावा भेजा। वह छोटे भाई गदाधर को तलाशने लगे। भांजे हृदय ने भी सभी जगह उन्हें तलाशा। जब वह कहीं नजर नहीं आए तो रामकुमार चिंतित हो उठे। भांजे को साथ लेकर वह गदाधर को तलाशने निकल पड़े। भटकते-भटकते वे गंगा की तरफ गए। सुनसान जगह होने के चलते उधर कोई नहीं जाता था। दूर से ही गदाई के गाने की आवाज सुनकर दोनों चौंक उठे। नजदीक जाकर देखा तो गदाधर भाव-विभोर होकर काली मां का भजन गा रहे थे। भजन पूरा होने तक रानी रासमणि भी वहां पहुंच गईं।
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भजन समाप्त होने पर रामकुमार ने कहा, ‘गदाई! मैंने तुम्हें कहां-कहां नहीं तलाशा, तुम यहां बैठे हो। चलो भोजन कर लो।’ गदाई ने जवाब दिया, ‘नहीं। वहां का भोजन खाने लायक नहीं है।’ इतने लोग खा रहे हैं और व्यंजनों की प्रशंसा करते हुए जा रहे हैं सो? ‘उस भोजन में अहंकार की बू आ रही थी, सो मुझसे नहीं खाया गया।’ भोजन में अहंकार कैसे? ‘खिलाने वाले खिलाए जा रहे थे और बड़े ही घमंड से भोजन की तारीफ किए जा रहे थे। जहां भाव नहीं हो, वहां भोजन नहीं करना चाहिए।’
संकलन : दिलीप लाल