रहस्यों से भरा जगन्नाथ मंदिर, रथ यात्रा शुरू इन बातों को जानकर रह जाएंगे हैरान

भगवान जगन्नाथ का ऐसा चमत्कार

भगवान जगन्नाथ के मंदिर में आज भी कई ऐसे चमत्कार होते हैं, जिनका जवाब विज्ञान के पास भी नहीं हैं। पुराणों के अनुसार, जगन्नाथ मंदिर को धरती का बैकुंठ माना गया है, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण आज भी यहां सदेह उपस्थित माने जाते हैं। यह प्राचीनकाल से यहां की सबर जनजाति के अराध्य देव हैं और ऐसा कहा जाता है कि इसी वजह से यहां भगवान विष्णु का रूप अन्य मंदिरों की अपेक्षा थोड़ा अलग नजर आता है।

यहां हवा की दिशा तक बदल जाती है

भगवान जगन्नाथ को समर्पित इस मंदिर का निर्माण 10 वीं शताब्दी में हुआ था, जिसे चार धामों में भी स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर की चोटी पर लहराता ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है। दरअसल ऐसा कहा जाता है कि यहां दिन के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम में इसके उल्ट दिशा में हवा बहती है। मगर मंदिर का ध्वज इसके ठीक विपरीत उल्टे दिशा में लहराता है, क्योंकि मंदिर में हवा दिन में समुद्र की ओर और रात में मंदिर की तरफ बहती है। इसके साथ ही मंदिर पर लगे सुदर्शन चक्र के दर्शन आप मंदिर परिसर में कहीं से भी खड़े होकर कर सकते हैं। हर तरफ से चक्र आपको अपने सामने ही लगा हुआ दिखेगा।

इस मंदिर से कोई भूखा नहीं जाता

मंदिर से जुड़ा एक अद्भुत रहस्य है कि इसके मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती है। इसके अलावा ऐसा कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन चाहे कितने ही श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचे, मगर प्रसाद की मात्रा कभी घटती नहीं है। हर समय पूरे साल के लिए भंडार भरा रहता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ के प्रताप से यहां हजार लोगों से लेकर लाख लोगों तक को प्रतिदिन भरपेट भोजन खिलाया जा सकता है। चाहे श्रद्धालुओं की संख्या में कितनी भी वृद्धि हो जाए, मंदिर के अंदर पकाया जाने वाला प्रसाद कभी कम नहीं होता है।

ऐसे होता है जगन्नाथजी का प्रसाद तैयार

यहां का प्रसाद भी अनोखे तरीके से पकाया जाता है। दरअसल प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक दूसरे पर रखे जाते हैं, जिन्हें लकड़ी के चूल्हे पर पकाया जाता है। मगर बताया जाता है कि इस प्रक्रिया में सबसे ऊपर बर्तन में रखी गई सामग्री सबसे पहले पकती है और फिर धीरे-धीरे नीचे के बर्तनों में रखी सामग्री पकती है। यहां की विशाल रसोई में भगवान जगन्नाथ को चढ़ने वाले महाप्रसाद को बनाने के लिए 500 रसोइए लगे रहते हैं, जिनके लिए अलग से 300 सहयोगी काम करते हैं। यानी करीब 800 लोग मिलकर महाप्रसाद तैयार करते हैं। यहां प्रसाद रूप में भक्तों को गोपाल भोग बांटा जाता है।

समुद्र की आवाज नहीं देती सुनाई

इस मंदिर की एक और चमत्कारी बात है कि मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही आपको समुद्र की लहरों की ध्वनि नहीं सुनाई देगी लेकिन जैसे ही आप मंदिर प्रांगण से निकलेंगे समुद्र की लहरों की ध्वनि स्पष्ट सुन सकते हैं। सुबह और शाम के समय इस चमत्कार को और अधिक स्पष्ट रूप से महसूस कर सकते हैं।

तो 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा जगन्नाथ पुरी मंदिर

भारत में किसी मंदिर का ध्वज हर दिन नहीं बदला जाता है। जगन्नाथजी का मंदिर ही एक मात्र मंदिर है जिसका ध्वज हर दिन बदला जाता है। हर दिन एक पुजारी को ऊंचे गुंबद पर चढ़कर ध्वज बदलना होता है। जगन्नाथ मंदिर की ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी ध्वज नहीं बदला गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा।

स्वर्ण मंदिर से अधिक दान हुआ था यहां सोना

लोकमान्यताओं के अनुसार, महाराजा रणजीत सिंह ने जगन्नाथ मंदिर के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से भी कहीं अधिक स्वर्ण दान किया था। इसके अलावा अपने अंतिम दिनों में अपनी वसीयत में वे दुनिया का बेशकीमती कोहिनूर हीरा भी इस मंदिर को दान कर गए थे। अंग्रेजों का पंजाब पर आधिपत्य स्थापित हो जाने के कारण रणजीत सिंह की अंतिम इच्छा पूरी नहीं हो सकी और जो कोहिनूर जगन्नाथजी के मुकुट में सज सकता था आज ब्रिटेन की महारानी के मुकुट की शोभा है।

स्नान यात्रा का भी काफी महत्व

जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा की ही तरह भगवान जगन्नाथ को उनके जन्मदिन के अवसर पर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मंदिर के अंदर से बाहर लेकर आया जाता है। भगवान जगन्नाथ के भक्तों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण उत्सव है। इस उत्सव में भगवान जगन्नाथजी को सुभद्रा और बालभद्रजी के साथ मंदिर से बाहर लाकर स्नान बेदी पर पूरे पारंपरिक तरीके से शुद्ध जल से भरे 108 घड़ों से स्नान कराया जाता है। इसके बाद कराने के बाद श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए सजाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के समय से चली आ रही है (फोटो साभार-विकिपीडिया)