यात्रा के साथ तीर्थः असम जाएं तो इन 7 मंदिरों को जरूर देखें

कामाख्या मंदिर

असम का कामाख्या मंदिर, विश्व प्रसिद्ध है। नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतों पर स्थित मां कामाख्या का मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि यहां देवी सती का योनी भाग गिरा था। यह शक्तिपीठ तंत्रसाधना का प्रमुख स्थान माना जाता है।

उमानंद भैरव का मंदिर

मां के मंदिर से कुछ ही दूरी पर उमानंद भैरव का मंदिर है। बताया जाता है कि उमानंद भैरव ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। इनके दर्शन के बिना माता की यात्रा अधूरी मानी जाती है। यह मंदिर अपने वास्तुशिल्प के लिए भी जाना जाता है। यहां से ब्रह्मपुत्र नदी का नजारा अद्भुत आनंद प्रदान करता है।

महाभैरव मंदिर

यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य के बीच पहाड़ों पर स्थित है, इस मंदिर को नागा बाबा ने बनवाया था। मंदिर के होने से शहर की सुंदरता में काफी बढ़ोतरी हुई है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। कहा जाता है इस मंदिर का जो शिवलिंग है, वो दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। यहां पहले जो मंदिर था, वह 1897 में आए भूकंप में नष्ट हो गया था और 20वीं शताब्दी में इसे फिर से बनवाया गया था।

नवग्रह मंदिर

ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे चित्रसिला हिल की चोटी पर स्थित नवग्रह मंदिर का इतिहास सबसे पुराना है। इस मंदिर में प्रवेश करते ही एक दिव्य शक्ति का अहसास होने लगता है। यहां नवग्रह शांति के लिए दूर-दूर से लोग पूजा करने आते हैं। इस मंदिर में नवग्रहों को दर्शाने के लिए नौ शिवलिंग स्थापित हैं और हर शिवलिंग अलग कपड़े से ढ़ंका हुआ है। यहां प्रसाद के रूप में सभी ग्रहों से संबंधित अनाज को पानी में भिगोकर दिया जाता है।

शुक्रेश्वर मंदिर

असम में पर्यटकों के बीच सबसे ज्यादा मशहूर शुक्रेश्वर मंदिर है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण राजा प्रामता सिंह ने साल 1744 में करवाया था। ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित इटाखुली पहाड़ी पर बना इस मंदिर का दृश्य देखने लायक है। यहां ब्रह्मपुत्र नदी पर सुबह जब सूर्य की किरण पड़ती है तब इसका नजारा बहुत ही मनोरम होता है। इस मंदिर में आप अहोम वंश के समय के खास वास्तुशिल्प की झलक देख सकते हैं।

मदन-कामदेव मंदिर

असम का मदन-कामदेव मंदिर ‘असम का खजुराहो’ के नाम से जाना जाता है। यहां की मिथुन मूर्तियां खजुराहो की याद दिलाती है। यह मंदिर कामदेव और उनकी पत्नी रति की प्रेमकथा को दर्शाता है। यह मंदिर घने जंगलों के भीतर पेड़ों से छुपा हुआ है। इसी स्थान पर भगवान शंकर द्वारा तीसरी आंख खोलने पर कामदेव भस्म हो गए थे। कामदेव का पुनर्जन्म और उनकी पत्नी रति के साथ फिर से मिलन भी यहीं हुआ था ऐसी कथा है।

हयग्रीव माधव मंदिर

यह मंदिर भगवान विष्णु के हयग्रीव अवतार को समर्पित है। मोनिकूट नाम की एक पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर का निर्माण 1583 में राजा रघुदेव नारायण ने करवाया था। इस मंदिर की मूर्ति भगवान जगन्नाथ जैसी दिखती है। देश-विदेश से इस मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं। यहां का सुंदर नजारा पर्यटकों का मन मोह लेना वाला है।