यहां 40 साल में एक बार भोलेनाथ के होते हैं दर्शन, ऐसा है मंदिर का रहस्य

महाशिवरात्रि पर जानिए महाबलेश्वर मंदिर के बारे में

देशभर में महाशिवरात्रि का पर्व 1 मार्च यानी आज को मनाया जा रहा है। इस बार महाशिवरात्रि पर ग्रह-नक्षत्रों के संयोग के साथ एक दिन यानी 28 फरवरी को सोम प्रदोष व्रत है और एक दिन बाद यानी 2 मार्च को फाल्गुन अमावस्या है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन शिव भक्त उपवास रखते हैं और शिवलिंग विधि पूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। महाशिवरात्रि के पर्व पर हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जो 40 साल में एक बार में खुलता है। आपने ऐसे मंदिर सुने होंगे, जो साल में एक बार खुलता है लेकिन दक्षिण भारत का यह विशेष मंदिर 40 साल में खुलता है और इस मंदिर में कई रहस्यों की भरमार है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में…

1500 साल पुराना है महाबलेश्वर मंदिर

दक्षिण भारत के कर्नाटक में मैंगलोर के पास एक गांव स्थित है, जिसका नाम है गोकर्ण। हिंदू धर्म में यह स्थान काफी पवित्र माना जाता है और लोक कथाओं से पता चलता है कि गोकर्ण भगवान शिव और विष्णु का शहर है। गोकर्ण का महाबलेश्वर मंदिर यहां का सबसे पुराना और अद्भुत मंदिर है। बताया जाता है कि यह मंदिर कम से कम 1500 साल पुराना है और कर्नाटक के सात मुक्ति स्थलों में से एक है। इस मंदिर में स्थित शिवलिंग को आत्मलिंग के नाम से जाना जाता है और इस मंदिर में स्थित शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते हैं। अपनी इन्हीं मान्यताओं के चलते इसे दक्षिण का काशी भी कहा जाता है।

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भगवान शिव ने दी थी रावण को यह शिवलिंग

महाबलेश्वर मंदिर में स्थित शिवलिंग को काशी के विश्वनाथ के बराबर पवित्र माना जाता है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह शिवलिंग लंका के राजा रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दी थी, लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने चाल चलकर शिवलिंग को यहां स्थापित करवा दिया। रावण ने यहां से शिवलिंग ले जाने के लिए तमाम कोशिशें की थीं लेकिन वह शिवलिंग को निकाल नहीं पाया। तभी से यहां भगवान शिव का वास माना जाता है।

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रामायण व महाभारत में मिलता है मंदिर का उल्लेख

महाबलेश्वर मंदिर में 6 फीट लंबा शिवलिंग स्थित है और इस मंदिर में सफेद ग्रेनाइट का उपयोग किया गया है। भगवान शिव के इस मंदिर में आप द्रविड़ वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण देख सकते हैं। महाबलेश्वर मंदिर का उल्लेख महाभारत और रामायण के हिंदू पौराणिक कथाओं में किया गया है। साथ ही इसे दक्षिण काशी की उपाधि मिली हुई है। मंदिर का रिवाज है कि मंदिर में आने से पहले आपको कारवार बीच में डुबकी लगानी चाहिए, फिर मंदिर के सामने स्थित महा गणपति मंदिर के दर्शन करके ही महाबलेश्वर मंदिर के दर्शन करने चाहिए।

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मंदिर के पास है भगवान गणेश का मंदिर

महाबलेश्वर मंदिर के पास भगवान गणेश का भी मंदिर है। गणेशजी ने यहां शिवलिंग स्थापित करवाई थी इसलिए उनके नाम का एक मंदिर निर्माण करवाया गया था। भगवान गणेश के मस्तक पर रावण द्वारा आघात साथ ही गोकर्ण में कई दूसरे अहम मंदिर भी हैं, जिनकी अपनी मान्यताएं हैं। इनमें उमा माहेश्वरी मंदिर, भद्रकाली मंदिर, वरदराज मंदिर, ताम्र गौरी मंदिर आदि मंदिर स्थित है। इसके अलावा आपको गोकर्ण में सेजेश्वर, गुणवंतेश्वर, मुरुदेश्वर और धारेश्वर मंदिर भी हैं। बताया जाता है कि महाबलेश्वर मंदिर और ये चार मंदिर मिलाकर इनको पंच महाक्षेत्र के नाम से जाना जाता है।

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इस तरह पड़ा गोकर्ण नाम

मंदिर के भीतर पीठ स्थान पर अरघे के अंदर आत्म तत्व शिवलिंग के मस्तक का अग्रभाग दृष्टि में आता है और उसी की पूजा होती है। यह मूर्ति मृगश्रृंग के समान है। कहा जाता है कि पाताल में तपस्या करते हुए भगवान रुद्र गोरूप धारिणी पृथ्वी के कर्णरन्ध्र से यहां प्रकट हुए, इसी से इस क्षेत्र का नाम गोकर्ण पड़ा। महाबलेश्वर मंदिर में आप जींस, ट्रॉउज़र या शॉट्स नहीं पहनकर जा सकते हैं। मंदिर के खुले रहने का समय सुबह 6 बजे से 12 बजे के बीच है, तो वही शाम 5 बजे से रात 8 बजे के बीच है। मंदिर तो इस समय पर खुलता है लेकिन शिवलिंग के दर्शन 40 साल में एक बार होते हैं। हालांकि ऐसा क्यों है और इसका क्या आधार है इसके बारे में कोई तथ्य नहीं मिलता है।

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