मेजर ध्यानचंद को इन्होंने दी थी हॉकी ट्रेनिंग, फिर मिले भारत को स्वर्ण पदक

संकलन: रेनू सैनी
ध्यान सिंह ने सोलह वर्ष की उम्र में सेना जॉइन कर ली थी। उन दिनों सेना में हॉकी व फुटबॉल का बहुत चलन था। ध्यान सिंह ने साथी सैनिकों को हॉकी खेलते देखा तो इस खेल की ओर आकर्षित हुआ और उसने भी हॉकी खेलनी शुरू की। एक दिन जब वह हॉकी खेल रहा था तो सूबेदार बाले तिवारी की नजर उस पर पड़ी। उसके खेल की गति से सूबेदार बाले तिवारी इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उसे खुद ट्रेनिंग देने का फैसला कर लिया। प्रशिक्षण से ध्यान सिंह का खेल निखरता चला गया। सेना में तो उसके खेल की तारीफ होने ही लगी, खुद ध्यान सिंह में भी हॉकी का जुनून सवार हो गया।

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वह दिन-रात अभ्यास करने लगा। जब उसके संगी-साथी थककर लौट जाते, वह अकेला मैदान में अभ्यास करता। रात में जब हॉकी स्टिक की आवाजें आतीं तो उसके साथी समझ जाते कि ध्यान सिंह खेल में लगा है। एक बार चांदनी रात में ध्यान सिंह अकेला प्रैक्टिस कर रहा था। तभी सूबेदार बाले तिवारी उधर से गुजरे। ध्यान सिंह को यूं अकेला प्रैक्टिस करते देख वे इतने खुश हुए कि उसे गले लगाते हुए बोले, ‘तुम एक दिन अवश्य हॉकी का चांद बनकर चमकोगे। मैं तुम्हें आज से ध्यान सिंह नहीं बल्कि ध्यानचंद कहूंगा ताकि तुम्हें हर पल यह याद रहे कि एक दिन हॉकी के आसमान में चांद की तरह चमकना है और देश का नाम रोशन करना है।’ ध्यान सिंह गुरु के पैर छूते हुए बोला, ‘मैं हॉकी के खेल में भारत का नाम रोशन करने के लिए दिन-रात एक कर दूंगा।’

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उस दिन के बाद से ध्यान सिंह ने और ज्यादा मेहनत करनी शुरू की। वही ध्यान सिंह मेजर ध्यानचंद के रूप में हॉकी के जादूगर कहलाए। उन्होंने न केवल भारत को ओलिंपिक में तीन स्वर्ण पदक दिलाए बल्कि हॉकी के इतिहास में अपना नाम भी सुनहरे अक्षरों में दर्ज कराया।