इधर भारतीय टीम के सामने विकट समस्या आ गई, जो पूरी तैयारी पर पानी फेरने जा रही थी। ध्यानचंद सहित चार खिलाड़ी बीमार हो गए। ध्यानचंद को तेज बुखार हो गया था। वह मैदान में उतरने की स्थिति में नहीं थे। टीम मैनेजर ने मायूस होकर कहा, ‘ध्यानचंद, कल तो तुम मैच खेल नहीं पाओगे। जान है तो जहान है। बीमारी और कमजोरी की हालत में प्रदर्शन भी अच्छा नहीं होगा।’ ध्यानचंद ने कहा, ‘सर, मैं एक सैनिक हूं। देश के मान के लिए जान की बाजी लगाने के लिए तैयार हूं। देश का गौरव बढ़ाने का यह अवसर फिर न मिलेगा।’
मैनेजर ने कहा, ‘ठीक है।’ दूसरे दिन ध्यानचंद भूल गए कि उन्हें बुखार है। टीम के कुछ अच्छे खिलाड़ी उनके साथ नहीं थे। फिर भी नकारात्मक विचारों को उन्होंने अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया और श्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए हॉलैंड को तीन-शून्य से हराकर स्वर्ण पदक जीत लिया। सच है, मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। एम्स्टर्डम रवाना होते समय जहां केवल तीन लोग टीम को पहुंचाने बंबई बंदरगाह तक आए थे, वहीं वापसी पर हजारों की भीड़ को स्वागत के लिए पाकर ध्यानचंद अभिभूत हो गए। उनके जन्मदिन पर आज (29 अगस्त) राष्ट्रीय स्पोर्ट्स डे मनाया जाता है और राष्ट्रपति श्रेष्ठ खिलाड़ियों को पुरस्कार प्रदान करते हैं। – संकलन : हरिप्रसाद राय