माता-पिता को 4 धाम यात्रा करने के लिए श्रीकृष्ण ने कर दिखाया यह कमाल

जब भगवान श्रीकृष्ण ने सभी तीर्थों को यहां बुलाया

शेषनाग रूपी पहाड़ी के नीचे विराजमान भगवान केदारनाथ

धार्मिक मान्यता है कि 80 वर्ष की उम्र में संतान प्राप्त करने के बाद नंद बाबा और यशोदा मैया ने चारधाम यात्रा करने की इच्छा जताई तो भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी ये इच्छा यहीं पूरी करने के लिए सभी तीर्थों का आह्वान किया। तब से भगवान श्री राधाकृष्ण की इस नित्य भूमि में सभी तीर्थ विद्यमान हैं जिनमें चारों धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गुप्तकाशी, यमुनोत्री और गंगोत्री भी ब्रज 84 कोस में ही मौजूद हैं।

आदिबद्री धाम में विराजमान हैं भगवान बद्रीनारायण

आदिबद्री धाम में भगवान बद्रीनाथ का मंदिर

जानकार बताते हैं कि ब्रज 84 कोस में राजस्थान और हरियाणा का क्षेत्र भी आता है। वहीं राजस्थान की सीमा के क्षेत्र से करीब 14 कोस की परिक्रमा के अंदर ही ये तमाम तीर्थस्थल आज भी मौजूद हैं। इस पूरे क्षेत्र को काम्यवन (कामां) कहते हैं। जो ब्रज 84 कोस के 12 वनों में से एक है और सबसे बड़ा है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण के अनुरोध पर नंद बाबा और यशोदा मैया के साथ ब्रजवासियों को दर्शन देने भगवान बद्रीनारायण प्रकट हुए थे और इनका नाम बूढ़ा बद्री पड़ गया। डीग से कामां के रास्ते पर चलने पर बूढ़ा बद्री मंदिर के समीप ही अलकनंदा कुंड बना हुआ है जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं।

नर-नारायण पर्वत भी यहीं

वहीं गोवर्धन से करीब 36 किलोमीटर की दूरी पर (डीग के समीप) आदिबद्री धाम है। भगवान बद्रीनाथ ने देवसरोवर का भी स्वयं निर्माण किया। नर-नारायण पर्वत भी यहीं आमने-सामने मौजूद है।

अगल-बगल में गंगोत्री-यमुनोत्री

माना जाता है कि आदिबद्री धाम वह स्थान है जहां भगवान बद्रीनाथ ने 4 युगों तक तपस्या की थी। मंदिर के समीप ही तप्त कुंड भी यहां बना हुआ है। आज भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। आदिबद्री धाम से आगे एक पहाड़ी पर गंगोत्री और यमुनोत्री धाम है। यहां अगल-बगल में गंगोत्री-यमुनोत्री का मंदिर बना हुआ है।

शेषनाग रूपी शिला के नीचे गुफा में भगवान केदारनाथ

84 कोस परिक्रमा में राजस्थान की सीमा में ही कामां से करीब 10 किलोमीटर दूर गांव विलोंद के समीप एक पर्वत पर भगवान केदारनाथ शेषनाग रूपी विशाल शिला के नीचे एक छोटी से गुफा में विराजमान हैं। जिस पर्वत पर केदारनाथ मंदिर है उसकी तलहटी में ही गौरीकुंड स्थित है। मंदिर करीब 500 फ़ीट की ऊंचाई पर है और करीब साढ़े 4 सौ सीढ़ि‍यां चढ़कर श्रद्धालु दर्शनों के लिए मंदिर तक पहुंचते हैं। इस पहाड़ी पर नंदी, गणेश और शेषनाग की छवि दिखाई पड़ती है।

रात में होते हैं अद्भुत दर्शन

श्रद्धालु इन सीढ़ियों के रास्ते पहुंचते हैं भगवान केदारनाथ के दर्शन करने

गुफानुमा मन्दिर में जो शिवलिंग स्थापित है वो पाषाण का बड़ा ही विचित्र शिवलिंग है। लाल पत्थर के इस शिवलिंग में भगवान आशुतोष के तीनों नेत्र, मस्तक, मुख ,नासिका, ओष्ठ, चन्द्रमा, गंगाजी, सर्पों के कुण्डल, सर्प और रुद्राक्ष की माला इत्यादि स्पष्ट दिखाई देते है। रात के समय दीपक की लौ में तो अद्भुत दर्शन होते है। संध्या के समय केदारनाथ पर्वत से घण्टियों के बजने की आवाज आज भी लोगों को सुनाई देती है।

सावन के महीने और महाशिवरात्रि पर मेला

केदारनाथ मंदिर के समीप पहाड़ी पर मौजूद नंदी स्वरूप विशालकाय शिला

ब्रज में मौजूद इन केदारनाथ मन्दिर में सावन के महीने और महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। इसके साथ ही कार्तिक मास में 84 कोस परिक्रमा के दौरान बड़ी संख्या में देशी-विदेशी भक्त यहां दर्शनों के लिए पहुंचते हैं। द्वापरकाल से ही ब्रज में भगवान केदारनाथ विराजमान हैं और आज तक अपने उसी दिव्य और विचित्र स्वरूप के दर्शनों से भक्तों को आनन्दित कर रहे हैं।