द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर के एक संताली परिवार में हुआ था।
अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “मैंने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मैंने अपने दो बेटों और पति को खो दिया है। मैं पूरी तरह से तबाह हो गई थी। लेकिन केवल भगवान ने मुझे लोगों की सेवा करना जारी रखने की ताकत दी है।” अपने पति और दो बेटों की मृत्यु के बाद वह ब्रह्मकुमारी संप्रदाय की अनुयायी बन गईं।
श्री मुर्मू को ओडिशा के विभिन्न मंदिरों में प्रार्थना करते देखना काफी स्वाभाविक है। वह जब भी अपने गाँव रैरंगपुर यात्रा करती थीं तो शिव मंदिर में झाड़ू लगाके भगवन के प्रति अपनी प्राथर्ना दरसा ती थी और राष्ट्रपति चुनाब के परिणाम के बाद वह आभार ब्यक्त करने के लिए हौज खास जगन्नाथ मंदिर, दिल्ली दर्शन करने गयी थी।
राजनीति में प्रवेश करने से पहले द्रौपदी मुर्मू ने एक टीचिंग करियर के रूप में अपना पेशा शुरू किया। मुर्मू ने श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, रायरंगपुर में सहायक प्रोफेसर के रूप में और ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में काम किया।
श्रीमती मुर्मू सबसे बड़ी समाजवादी भी हैं; उन्होंने अपना पुश्तैनी घर एक ट्रस्ट को दान कर दिया और एक मुफ्त स्कूल चलाती है। उन्होंने अपनी मृत्यु के बाद अपनी आंखों को दान करने की भी घोषणा की है। उन्होंने हमेशा अपने समुदाय के लिए बहुत मेहनत की है, भले ही वह एक आदिवासी समूह की सदस्य है, और इसने उसे काफी पहचान दिलाई है।