महाभारत युद्ध के बाद हुई थीं ये 9 बड़ी घटनाएं, जिन्होंने युग बदलकर रख दिया

महाभारत का परिणाम

महाभारत युद्ध के परिणाम स्वरूप पांडव संख्या में कम होने के बावजूद जीत गए और कौरव संख्या में पांडवों से कहीं अधिक होने के बाद भी हार गए। इसका कारण उनके कर्म को माना गया। नीति और अनीति की राह पर चलने को माना गया। विधि के विधान के पक्ष और विपक्ष में खड़े होने को माना गया। पांडव युद्ध जीत गए और श्रीकृष्ण ने पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर का राजतिलक करा दिया।

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फिर इनका अंत कैसे हुआ?

जिनका राजतिलक स्वयं भगवान के हाथों से हुआ हो, उनका विनाश कैसे हुआ? क्या हुआ जब हस्तिनापुर की राजगद्दी पांडवों के हाथों में आ गई? पांडवों ने हस्तिनापुर पर कब तक शासन किया? वे आखिर कैसे मर गए या वास्तव में उनकी हत्या कर दी गई? और सबसे महत्वपूर्ण बात, भगवान कृष्ण के साथ क्या हुआ था? ऐसे कई सवाल मन में उठते हैं। यहां उन सवालों के उत्तर (संभावित) देने का प्रयास किया गया है।

राजतिलक और शाप का संबंध

कुरुक्षेत्र का युद्ध जीतने के बाद, पांडवों को हस्तिनापुर का शासन मिला। युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का महाराज बनाया गया। लेकिन दूसरी तरफ गांधारी एक दुःखी-त्रस्त महिला के रूप में विलाप कर रहीं थी। अपने सौ पुत्रों की मृत्यु का शोक मना रहीं थी। जब युधिष्ठिर को सिंहासन सौंप दिया गया और श्रीकृष्ण का हस्तिनापुर से विदाई लेने का समय आया, तब वह गांधारी के पास गए और गांधारी ने श्रीकृष्ण को उनके वंश का अंत हो जाने का शाप दिया।

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पांडवों का राज-काज

जानकारी के अनुसार, महाभारत के बाद हस्तिनापुर पर पांडवों ने 36 वर्षों तक शासन किया। इस बीच गांधारी का शाप अपना असर दिखाने लगा और श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका में एक अशुभ घटना घटी। वहां एक उत्सव के दौरान सभी यदुवंशी आपस में ही लड़ने लगे और एक-दूसरे की हत्या करने लगे। यह घटना सोमनाथ के समीप प्रभास क्षेत्र में घटी।

श्रीकृष्ण पृथ्वी लोक से चले गए

उधर प्रभास क्षेत्र में यदुवंशियों के एक-दूसरे को मारडालने के बाद पहले बलराम जी अपने लोक को वापस चले गए। इसके बाद श्रीकृष्ण वहीं प्रभास क्षेत्र में एकांतवास में रहने लगे। एक दिन वह ध्यानावस्था में एक वृक्ष के नीचे बैठे थे, तभी जरा नाम के एक शिकारी ने गलती से उनके पैर में तीर मार दिया और श्रीकृष्ण ने वह मानव देह त्याग दी। भगवान कृष्ण के बैकुंठ लौट जाने के बाद, देव ऋषि वेदव्यास ने अर्जुन को बताया कि श्रीकृष्ण और उनके भाइयों का जीवन समाप्त हो गया है।

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फिर हुई कलियुग की शुरुआत

जानकारी के अनुसार, श्रीकृष्णजी जिस दिन बैकुंठ को लौटे उसी रात को 12 बजे से कलियुग का प्रारंभ हो गया। वेदव्यासजी से श्रीकृष्ण के प्रयाण की सूचना मिलने पर युधिष्ठिर अपने प्रपौत्र परीक्षित का राजतिलक करते हैं। फिर अपने सभी भाइयों और द्रौपदी के साथ हिमालय की ओर चले जाते हैं। महाभारत के अनुसार, हिमालय से वह स्वर्ग चले जाते हैं और इस यात्रा में एक कुत्ते के रूप में आए यमदेव उनका मार्गदर्शन करते हैं।

इस यात्रा का परिणाम

जैसे-जैसे सभी पांडव हिमालय पर ऊपर की तरफ चढ़ते हैं, वे एक-एक करके गिरने लगते हैं और उनकी आत्मा उनका शरीर छोड़ने लगती है। यह क्रम द्रौपदी के साथ शुरू होता है और भीम की मृत्यु पर समाप्त होता है। उनकी मृत्यु के कारण उनकी इच्छाओं, आक्षांओ और उनके गर्व के कारण होने वाली परेशानियों से जुड़े हैं। केवल युधिष्ठिर ही थे, जिन्होंने किसी भी चीज पर गर्व नहीं किया। इस कारण केवल वही जीवित रूप में हिमालय के ऊपर स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर पहुंच पाते हैं।

स्वर्ग और घटनाएं

स्वर्ग के प्रवेश द्वार पर भगवान यम कुत्ते के रूप को त्यागकर अपने असली रूप में आते हैं और युधिष्ठिर को स्वर्ग में प्रवेश करने देने से पहले, उन्हें नरक में ले जाते हैं। नरक में युधिष्ठिर अपने भाइयों और द्रौपदी को अपने पाप स्वीकार करते हुए देखते हैं तो उन्हें उनके पापों से मुक्ति दिलाते हैं। इसके बाद भगवान इंद्र युधिष्ठिर को स्वर्ग ले जाते हैं और उनसे वादा करते हैं कि उनके भाई और द्रौपदी भी जल्द स्वर्ग में स्थान ले लेंगे।

द्वापर के बाद क्या?

महाभारत के सबसे महत्वपूर्ण पात्र भगवान कृष्ण और पांडवों ने इस तरह नश्वर संसार को छोड़ दिया। इसके बाद कलियुग शुरू हुआ, जो अभी तक चल रहा है। जानकारी के अनुसार, अब तक कलियुग के 5 हजार साल पूरे हो चुके हैं। कलियुग की अवधि क्या है, इस पर अलग-अलग मत देखने को मिलते हैं।

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