भारत में इन जगहों पर नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन, कहीं मिला धोखा तो कहीं मानते हैं काला दिन

रक्षाबंधन का पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और लंबी उम्र की कामना करती हैं। भाई बहन का यह पवित्र त्योहार सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इस दिन के बाद से सावन मास खत्म हो जाता है और भाद्रपद मास की शुरुआत हो जाती है। रक्षाबंधन के दिन सड़कों पर काफी भीड़ देखने को मिलती है लेकिन भारत में कुछ ऐसी जगह भी हैं, जहां रक्षाबंधन का पर्व ही नहीं मनाया जाता, वे लोग इस दिन अशुभ मानते हैं। आइए जानते हैं भारत में कहां कहां पर यह त्यौहार नहीं मनाया जाता…

रक्षाबंधन को मनाते हैं काला दिवस

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद में स्थिति मुरादनगर के सुरान गांव में 12वीं सदी से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता। यहां के निवासी इस दिन को काला दिन मानते हैं। दरअसल राजस्थान से पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह ने हिंडन नदी के किनारे अपना गांव बसाया था। जब इसकी जानकारी मोहम्मद गौरी को मिली तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन गांव की जनता पर हाथियों से हमला करवा दिया, जिसकी वजह से कुछ लोग मारे गए और कुछ घायल हो गए। उस दिन से आज तक यहां रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया गया और यहां के निवासी इस दिन को काला दिन बताते हैं।

डर की वजह से नहीं मनाते राखी का पर्व

उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में भीकमपुर जगत पुरवा गांव है और यहां भी रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता। यहां अनहोनी होने की डर की वजह से 6 दशकों से बहनों ने भाइयों को राखी नहीं बांधी। बताया जाता है कि साल 1955 में बहन ने एक भाई को राखी बांध दी थी और उसी दिन गांव में एक व्यक्ति की हत्या हो गई थी। उस दिन के बाद से कोई यह त्योहार नहीं मनाता। कुछ दशकों पहले बहनों के कहने पर रक्षाबंधन का पर्व शुरू हुआ तो गांव में अजीबोगरीब घटना होने लगीं। तब से दोबारा किसी ने राखी का पर्व मनाने की हिम्मत नहीं की। ग्रामीणों का कहना है कि अगर रक्षाबंधन के दिन उसी परिवार में किसी बच्चे का जन्म होता है तो इस परंपरा को फिर से शुरू किया जा सकता है।

भाइयों को मिले धोखे की वजह से नहीं मनाते राखी

यूपी के संभल जिले में बेनीपुर चक गांव में 300 सालों से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जा रहा। पुराणों में बताया गया है कि इस जिले में ही भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। बेनीपुर चक के साथ एक कड़वी याद जुड़ी हुई है, जिसकी वजह से यहां के लोग राखी नहीं बंधवाते। यहां के लोग राखी बंधवाने से डरते हैं और इसकी वजह से बहन को धोखा। दरअसल यहां के निवासी बताते हैं कि पहले इस गांव के निवासी कहीं और रहते थे। यादवों और ठाकुरों की दोस्ती अच्छी थी लेकिन ठाकुर इस दोस्ती के पीछे एक चाल चल रहे थे और उनकी मंशा थी कि यादवों के गांव की जमींदारी पाने की। एक बार राखी के अवसर पर ठाकुरों की बेटियां यादवों को राखी बांधने आईं तो उन्होंने एक वचन मांग लिया कि वह जो मांगेंगी, यादव भाई को देना पड़ेगा। यादव भाई ने वचन दे दिया। राखी बांधने के बाद यादवों की बहनों ने गांव की जमींदारी मांग ली और इससे उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। वचन के पक्के इन भाइयों ने गांव की जमींदारी देकर गांव को त्याग दिया। इसके बाद कभी भी राखी ना बंधवाने की कसम खाई।

राखी को लेकर है कड़वी याद

राजस्थान के पाली गांव में पालीवाल लोग रहते हैं। इस गांव के लोग अब देश के अलग-अलग जगहों पर रह रहे हैं। यहां भी रक्षाबंधन के पर्व को लेकर एक कड़वी याद जुड़ी हुई है। इनके लिए राखी का दिन काला दिवस है। बताया जाता है कि 1230 ई. के आसपास रक्षाबंधन के दिन मोहम्मद गौरी ने आक्रमण कर दिया, जिससे बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई। इस घटना के बाद से ही लोगों ने राखी मनाना बंद कर दिया और करीब 800 सालों से यहां के निवासी राखी का पर्व नहीं मनाते।

कड़वी याद की वजह से नहीं मनाते रक्षाबंधन

उत्तर प्रदेश के धौलाना जिले के साठा क्षेत्र में भी रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता। गांव के लोग खुद को महाराणा प्रताप के वंशज मानते हैं और राखी के दिन ही महाराणा प्रताप को एक हार का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से युद्ध में अनगिनत लोग मारे गए थे। इसलिए यहां रक्षाबंधन के दिन को मातम दिवस के रूप में मनाते हैं।