बरसाने और नंदगांव की लट्ठमार होली, जानें खूबियां और मान्यताएं

राधारानी की नगरी बरसाने में लड्डुओं की होली के बाद लट्ठमार होली खेली जाती है और फिर इसके अगले दिन नंदगांव में यही परंपरा निभाई जाती है। देश विदेश से लाखों लोग इस होली को देखने के लिए बरसाना और नंदगांव में आते हैं। ब्रज में वैसे भी होली खास मस्ती भरी होती है क्योंकि इसे कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है। लट्ठमार होली में मुख्यतः नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं, क्योंकि कृष्ण नंदगांव के थे और राधा बरसाने की थीं। साथ ही रंगों को लेकर भी यहां खास ध्यान रखा जाता है। रंगों में कोई मिलावट ना हो इसके लिए टेसू के फूलों से रंगों को तैयार किया जाता है। होली के दौरान यहां रसिया गायन का भी आयोजन किया जाता है। आइए जानते हैं बरसाने और नंदगांव की लट्ठमार होली के बारे में…

विश्व में खास है ब्रज की होली
यूं तो ब्रज में में होली का महोत्सव डेढ़ महीने पहले से ही शुरू हो जाता है लेकिन ब्रज के हर तीर्थस्थल की अपनी अलग परंपरा है और होली मनाने का तरीका भी। इसलिए विश्व भर में ब्रज की होली का खास महत्व है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती है और दशमी तिथि को नंदगांव में यह होली खेली जाती है। लट्ठमार होली में कान्हा की ढाल के साथ हुरियारें व राधा की लाठियों के साथ हुरियारिन रंगीली होली खेलते हैं।

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इस तरह शुरू हुई लट्ठमार होली की परंपरा
लट्ठमार होली खेलने की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है। दरअसल भगवान कृष्ण को होली का उत्सव बहुत अच्छा लगता था और वह इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। होले के मौके पर भगवान कृष्ण नंदगांव से राधा रानी से मिलने के लिए बरसाने जाते हैं और उनके साथ सखा ग्वाले भी होते हैं।

बरसाने पहुंचकर कृष्ण राधा रानी और सखियों के साथ होली खेलते हैं। तब कृष्ण और ग्वाले राधा रानी और सखियों से होली की ठिठोली करने लगते हैं। लेकिन राधा रानी और उनकी सखियां भी किसी से कम नही थीं तब उन्होंने छड़ी लेकर कान्हा और उनके ग्वालों के पीछे भागती हैं और छड़ी मारती हैं। तभी से लट्ठमार होली खेलने की परंपरा चली आ रही है। आज भी बरसाने और नंदगांव में इसी परंपरा को निभाया जाता है। ब्रज में मान्यता है कि लट्ठमार होली खेलने के लिए भगवान कृष्ण और राधा रानी इस रंग में रंग जाते हैं।

इस तरह खेली जाती है लट्ठमार होली
बरसाने में नंदगांव की टोलियां पिचकारियों को लेकर पहुंचते हैं तो उन पर बरसाने की महिलाएं खूब लाठियां बरसाती हैं। पुरुषों को इन लाठियों से बचना होता है और साथ ही महिलाओं को रंगों से भिगोना होता है। इसके लिए वह लाठी और ढ़ालों का सहारा लेते हैं। अगले दिन नंदगांव में भी यही आयोजन किया जाता है। नंदगांव और बरसाने के लोगों का विश्वास है कि होली का लाठियों से किसी को चोट नहीं लगती है। अगर चोट लग भी जाए तो उन घाव पर मिट्टी मिलकर फिर शुरू हो जाते हैं। पुरुषों को हुरियारे और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है और फिर साथ मिलकर इस उत्सव को मनाते हैं।

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बरसाने और नंदगांव में लट्ठमार होली
बरसाने में लड्डू होली 10 मार्च को खेली गई और फिर 11 मार्च यानी आज लट्ठमार होली खेली जाएगी। इसके अगले दिन यानी 12 मार्च को नंदगांव में यह होली खेली जाएगी। लट्ठमार होली में महिलाएं पुरुषों पर लाठियां बरसाती हैं, जितनी तेजी से लाठियों का प्रहार पड़ता है, उतना ही होली का रंग गहरा होता जाता है। इसी प्रकार का आयोजन फिर अगले दिन नंदगांव में किया जाता है।