प्रधानमंत्री बनने से पहले इस तरह का कार्य करते थे लाल बहादुर शास्त्री

संकलन: बेला गर्ग
एक बार की बात है। लाल बहादुर शास्त्री तब प्रधानमंत्री नहीं बने थे, लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य थे और देश के एक प्रभावी नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई थी। वह आम जनता से मिलने ऐसे क्षेत्रों में जा रहे थे जहां सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं था। उन क्षेत्रों में पहुंचना भी खासा मुश्किल था। साधन-सुविधाओं से वंचित इन क्षेत्रों में कभी कोई राजनेता या बड़ा अधिकारी जाना पसंद नहीं करता था, पर शास्त्रीजी के उत्साह में कोई कमी नहीं थी। वे दूर-दराज के गांवों में पैदल ही चले जा रहे थे, जबकि उनके साथ चलने वाले लोग परेशान हो रहे थे। कुछ अधिकारियों ने तो शास्त्रीजी को लौट चलने की भी सलाह दी, पर वह नहीं माने।

एक छोटे गांव में ऐसे ही पैदल घूमते हुए उनके पैर में चोट लग गई। उनके साथ आए लोगों ने बड़ी मुश्किल से एक डॉक्टर को बुलवाया। डॉक्टर ने उनका उपचार किया और कुछ दवाइयां दीं। जब वह जाने लगा तो शास्त्रीजी ने उसकी फीस उसके हाथ में पकड़ाई। डॉक्टर पैसे देखकर सकपका गया। उसने शास्त्रीजी को पैसे लौटाते हुए कहा, ‘महोदय, इतनी छोटी सेवा के बदले फीस देकर शर्मिंदा न करें। मैं आपके काम आ सका, यह मेरे लिए गौरव की बात है।’

शास्त्रीजी विनम्रतापूर्वक बोले, ‘डॉक्टर साहब, मैं आपको पैसे दे सकता हूं और मेरी सामर्थ्य है तो आपको पैसे ले लेने चाहिए। हां, यदि कभी कोई निर्धन और असहाय व्यक्ति आपको मिले, जो फीस न चुका सकता हो तो आप उसका इलाज बिना फीस के करना। अगर आप ऐसा कर सकें तो यह मेरे ऊपर बहुत बड़ा अहसान होगा।’ उनकी बातें सुनकर डॉक्टर बेहद प्रभावित हुआ और उसने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। इस तरह शास्त्रीजी ने लोगों का जीवन ही नहीं बदला, बल्कि लोगों को जनसेवा एवं परोपकार के लिए भी तत्पर किया।