पुलिस से बचने के लिए चंद्रशेखर आजाद को बनना पड़ा नर्तकी का भाई

क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद अपनी निडरता के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। वह शरीर से बड़े तगड़े थे। कभी वह लालाजी, तो कभी तोंद निकले पंडित जी लगते थे। अंग्रेजों के विरुद्ध उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां निरंतर चलती रहती थीं। उधर पुलिस और सीआईडी भी उनके पीछे लगी रहती थी, लेकिन वह बड़ी चालाकी से हर बार किसी न किसी प्रकार का बहाना बनाकर, कोई रूप बदलकर अथवा नाटक कर बच निकलते थे।

एक बार की बात है। आजाद को क्रांतिकारी गतिविधि के सिलसिले में एक दोस्त से मिलने कानपुर जाना था। किसी प्रकार से इस बात की भनक पुलिस को लग गई। फिर क्या था, पुलिस तो लग गई आजाद को पकड़ने की जुगत में। कानपुर पहुंचकर आजाद पैदल ही दोस्त से मिलने चल दिए। चलते-चलते उन्हें अहसास हो गया कि पुलिस और सीआईडी उनका पीछा कर रही है। यह भांप कर आजाद रास्ता बदलकर चालाकी से एक धर्मशाला में घुस गए, जहां एक बारात ठहरी हुई थी। उस समय बारात के मनोरंजन के लिए गाने-बजाने का कार्यक्रम चल रहा था, जिसमें एक नर्तकी नृत्य कर रही थी।

आजाद बारातियों के साथ घुल-मिलकर नृत्य का मजा लेने लगे। सभी बाराती आजाद को कोई मेहमान ही समझ रहे थे। तभी वह नर्तकी आजाद का तगड़ा डीलडौल और मस्तमौला अंदाज देखकर उनकी गोद में आकर बैठ गई। इतने में एक पुलिस वाला वहां आ पहुंचा और सीधे आजाद के पास आकर पूछने लगा, ‘भाई साहब, आप कौन हो?’ यह सुनकर आजाद खिलखिलाकर हंसने लगे और संभलकर मस्ती में आकर बोले, ‘श्रीमान जी, मैं इनका भाई हूं। कोई पुलिस वाला या अन्य कोई व्यक्ति मेरी बहन के साथ छेड़छाड़ न करे, इसलिए इनकी सुरक्षा के लिए साथ रहता हूं।’ यह बात सही मानकर पुलिस वाला अच्छा-अच्छा कह कर चला गया, और थोड़ी देर बाद आजाद बचते-बचाते अपने दोस्त से मिलने चले गए।

संकलन : रमेश जैन