पति को क्‍यों बेईमानी करने के लिए उकसा रही थी जज साहब की पत्‍नी

उड़िया बाबा के सान्निंध्य में बदायूं के निकट संत-महात्माओं का सत्संग-समारोह चल रहा था। एक न्यायाधीश भी पत्नी सहित संतों के सत्संग में शामिल हुए। सत्संग-प्रवचन के बाद वे संत उड़िया बाबा की कुटिया में पहुंचे और बाबा को प्रणाम करके बैठ गए। धर्मचर्चा के दौरान बातों-बातों में जज साहब की पत्नी ने कहा, ‘महाराज, इनकी ईमानदारी की धाक और प्रसिद्धि तो खूब है, किंतु हम पर लक्ष्मीजी की कृपा नहीं हो पा रही है।’

इस पर जज साहब ने विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा, ‘बाबा, मैं एक परम वैष्णव परिवार से हूं। वकालत की पढ़ाई के लिए भेजते वक्त मेरे पिताजी ने कहा था, बेटा, यह ध्यान रखना कि ईमानदारी से बढ़कर दूसरा कोई गुण और धर्म नहीं है। तुम अगर वकील बने, तो किसी का झूठा मुकदमा हाथ में न लेना। किसी निरपराध को दंड दिलाने का अधर्म कृत्य न करना, बेईमानी का एक पैसा भी न छूना। मैंने पिताजी को वचन दिया कि आपके दिए संस्कारों का जीवन भर दृढ़ता से पालन करूंगा। मैं पिताजी के आशीर्वाद और भगवान की कृपा से वकील से जज बन गया। कई बार धनी लोग धन के बल पर मुझे डिगाना चाहते हैं। मैं उनका धन ठुकरा देता हूं। मेरी पत्नी उस धन को लक्ष्मी बताकर स्वीकार कर लेने का आग्रह करती हैं।’

अब उड़िया बाबा जज की पत्नी से बोले, ‘माई, तुम अपने ईमानदार और धर्मनिष्ठ पति को उसके न्याय और धर्म के मार्ग से डिगाने का दुराग्रह करके स्वयं घोर पाप क्यों मोल लेती हो? ईमानदारी से बड़ा न कोई धर्म है, न धन। बेईमानी का धन लक्ष्मी नहीं होता। वह अभिशाप है, जो घोर अशांति पैदा करके विनाश का कारण बनता है।’ बाबा के प्रेरणादायक शब्दों को सुनकर पत्नी ने भविष्य में ऐसा दुराग्रह न करने का संकल्प ले लिया।

संकलन : रमेश जैन