नेहरूजी खरीदने पहुंचे छड़ी, फिर जो हुआ जानकर कहेंगे वाह

बात 1947 की है। देश को आजादी मिल चुकी थी। सरदार वल्लभभाई पटेल बीमारी के बाद मसूरी में स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू उनका हालचाल जानने मसूरी गए हुए थे। वह एक दिन मसूरी के बाजार में घूमने निकले तो उनकी नजर छड़ी वाली एक दुकान पर पड़ी जहां एक वृद्ध बैठा था। नेहरूजी उस दुकान की ओर बढ़ गए। वहां एक छड़ी पसंद कर उन्होंने दुकानदार से पूछा, ‘बाबा इसके कितने पैसे दूं?’ वृद्ध दुकानदार नेहरूजी को जानता था। उन्हें सामने देखकर वह पुरानी यादों में खो गया। उनके सवाल का कोई जवाब नहीं दे सका।

नेहरूजी के दोबारा पूछने पर भर्राए गले से बोला, ‘आप तो खुद इस देश के सबसे बड़े रत्न हैं। मैं आपसे पैसे नहीं ले सकता।’ जब नेहरूजी ने जोर दिया तो वह बोला, ‘बात सिर्फ इतनी ही नहीं है। आनंद भवन में मैं आपको छोटे से बच्चे के रूप में देख चुका हूं, आपको गोद में खिलाया भी है, मैं आपसे पैसे नहीं ले सकूंगा।’ वृद्ध की बातें सुनकर नेहरूजी भी अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए भावुक हो गए। उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और बंद मुट्ठी वृद्ध की हथेली पर रखकर उसकी हथेली बंद करते हुए कहा, ‘बाबा, इसे कीमत मत समझना। आज घर जाकर बच्चों को मेरी ओर से मिठाई और प्यार देना।’

वृद्ध दुकानदार उसके बाद कुछ न बोल सका, बस नेहरूजी को जाते हुए देखता रहा। उनके जाने के बाद दुकानदार ने बंद मुट्ठी खोलकर देखी तो देखता रह गया। उसकी मुट्ठी में सौ रुपये का एक करारा नोट पड़ा था। शाम को घर जाकर वृद्ध दुकानदार ने सारी बातें परिवार वालों को बताईं तो सभी भावुक हो गए। उस जमाने में सौ रुपये का बहुत ज्यादा मोल था। लेकिन उस वृद्ध के परिवार के लिए वह नोट अनमोल था।

संकलन : रमेश जैन