नवकलेवर (Nabakalebar)

जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ की कई अलौकिक महानताएं हैं। इनमें नवकलेवर एक बहुत बड़ा अलौकिक पर्व है। भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की मूर्तियों को हर 12 साल में बदल दिया जाता है। पुरानी मूर्तियों से नई मूर्तियों में परिवर्तन होता है और पुरानी मूर्तियों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।बदलाव के समय पूरे शहर की लाइटें बंद कर दी जाती हैं। लाइट बंद होने के बाद सीआरपीएफ की फौज मंदिर परिसर को चारों तरफ से घेर लेते हैं। उस समय कोई भी मंदिर नहीं जा सकता। मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है। पुजारी की आंखों पर पट्टी बंधी होती है। पुजारी के हाथ में दस्ताने होते हैं। वह पुरानी मूर्ति से “ब्रह्म पदार्थ” निकालते हैं और नई मूर्ति में डालते हैं। यह ब्रह्म पदार्थ क्या है, आज तक कोई नहीं जानता। इसे आज तक किसी ने नहीं देखा। हजारों सालों से यह एक मूर्ति से दूसरी मूर्ति में बदल गया है।

यह एक अलौकिक पदार्थ है, इसे छूने मात्र से ही व्यक्ति के शरीर के चीथड़े उड़ जाते हैं। यह ब्रह्म पदार्थ भगवान श्री कृष्ण से संबंधित है। लेकिन यह क्या है, यह कोई नहीं जानता। यह पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है। और इसे नवकलेवर कहा जाता है। इस नवकलेबर से ज्ञात होता है कि मनुष्य, भगवान, जो नश्वर संसार में है, वह कभी अमर नहीं होता, एक दिन मोक्ष प्राप्त करना होता है। लेकिन आत्मा सदा अमर है।

गीता में भी इसका उल्लेख है:
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥

लेकिन आज तक कोई भी पुजारी यह नहीं बता पाया है कि महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ति में यह अलौकिक पदार्थ क्या है।