द्वारका में यहां चावल दान करने से कई जन्मों तक नहीं होते गरीब, यहीं पर था श्रीकृष्ण का भवन

इसलिए इस द्वारका को कहते हैं बेट और भेट द्वारका

भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो बातों के कारण भेट पड़ा। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई थी। गोमती द्वारका से यह स्थान 35 किलोमीटर दूर स्थित है।इस मंदिर में कृष्‍ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब आप भेट द्वारका की यात्रा करते हैं।

इसलिए भेट द्वारका में है चावल दान की परंपरा

मान्‍यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्‍यायाधीश भगवान कृष्‍ण ही थे। माना जाता है कि आज भी द्वारका नगरी इन्‍हीं की कस्‍टडी में है। इसलिए भगवान कृष्‍ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। मान्‍यता है कि सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्‍हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्‍ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। ऐसी मान्‍यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्‍त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।

मंदिर की मूर्ति की यह है खास बात

यहां के पुजारी बताते हैं कि एक बार संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी, लेकिन भेंट द्वारका बची रही द्वारका का यह हिस्सा एक टापू के रूप में मौजूद है। मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र भी है। यहां मंदिर का निर्माण 500 साल पहले महाप्रभु संत वल्‍लभाचार्य ने करवाया था। मंदिर में मौजूद भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसे रानी रुक्मिणी ने स्‍वयं तैयार किया था।

यहां ही भगवान ने भरी नरसी की हुंडी

मान्‍यता है कि भेंट द्वारका ही वह स्‍थान है जहां भगवान कृष्‍ण ने अपने परम भक्‍त नरसी की हुंडी भरी थी। पहले के जमाने में यह चलन था कि लोग पैदल यात्रा में अधिक धन अपने साथ नहीं ले जाते थे। इस डर से कि कोई चोर न चुरा ले। धन साथ ले जाने की बजाए वे किसी विश्वस्त और प्रसिद्ध व्यक्ति के पास रुपया जमा करके उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम हुंडी (धनादेश) लिखवा लेते थे। नरसिंह मेहता की गरीबी का उपहास करने के लिए कुछ शरारती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थ यात्रियों से उनके नाम हुंडी लिखवा ली, पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने नरसिंह की लाज रखने के लिए श्यामल शाह सेठ का रूप धारण किया और नरसिंह की हुंडी को भर दिया। इस हुंडी का धन तीर्थयात्रियों को दे दिया गया और इस तरह नरसिंह का यश बढ़ गया।

बेट द्वारका ऐसे पहुंचे

द्वारका नगरी से भेंट द्वारका की दूरी करीब 35 किलोमीटर है जिसमें 30 किलोमीटर सड़क मार्ग से ओखा जा सकते हैं। यहां से 5 किलोमीटर नाव द्वारा समुद्री मार्ग पार करके भेट द्वारका जिसे गुजराती में बेट द्वारका कहते हैं पहुंच सकते हैं।