एक दिन उन्हें सूचना मिली कि रास बिहारी बोस भारत में सशस्त्र क्रांति की योजना बना रहे हैं। उन्होंने राजस्थान में क्रांति का कार्य स्वयं संभाल लिया और अपने भाई जोरावर सिंह और पुत्र प्रताप सिंह को रास बिहारी बोस के पास भेजा। इन दोनों ने रास बिहारी बोस के साथ लॉर्ड हार्डिंग द्वितीय की सवारी पर बम फेंकने के साहसिक काम को अंजाम दिया। स्वतंत्रता संग्राम में भाई और बेटे दोनों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। वर्ष 1903 में लॉर्ड कर्जन के दिल्ली दरबार में राजाओं के साथ उदयपुर के महाराणा फतेह सिंह को भी आमंत्रित किया गया। राजस्थान के क्रांतिकारियों को यह पसंद नहीं था। उन्होंने महाराणा को रोकने की जिम्मेदारी केसरी सिंह बारहठ को सौंपी। केसरी सिंह ने राजा को रोकने के लिए उसी समय ‘चेतावनी रा चुंग्ट्या’ नामक सोरठे रचे। इन्हें सुनकर महाराणा ने ‘दिल्ली दरबार’ में न जाने का निश्चय कर लिया।
ब्रिटिश सरकार ने राजपूताना में क्रांति फैलाने के लिए केसरी सिंह बारहठ और अर्जुन लाल सेठी को खास जिम्मेदार माना। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में वह कैदियों को दाल और अनाज के दानों से वर्णमाला और गिनती सिखाते थे। भारत के नक्शे और देश के अन्य प्रांतों का ज्ञान कराते थे। जेल से छूटने के बाद वह सपरिवार वर्धा चले गए, जहां महात्मा गांधी के संपर्क में आए। इस महान योद्धा का 14 अगस्त 1941 को निधन हो गया।
प्रस्तुति : रेनू सैनी