असहयोग आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हुए भैयालाल ने दमोह के दुकानदारों से विदेशी कपड़ों का बहिष्कार कराया। लेकिन एक धनी व्यापारी विदेशी कपड़ों को बेचना बंद नहीं कर रहा था। वह दिन में तो आंदोलन के पक्ष में लंबी-चौड़ी बातें करता, विदेशी कपड़ों का विरोध करता, बाकी लोगों से भी उनका बहिष्कार करने को कहता, लेकिन रात में चोरी-छुपे विदेशी कपड़े बेचता था। जब चौधरी जी को पता चला तो वह उसकी दुकान के सामने अनशन पर बैठ गए। छठे दिन उस दुकानदार ने अपने किए पर माफी मांगी, तब भैयालाल ने अनशन तोड़ा। गांधीजी ने भी भैयालाल के अनशन की तारीफ की।
1922 में भैयालाल कलकत्ता से कांग्रेस की मीटिंग में हिस्सा लेकर ट्रेन से लौट रहे थे, तो मिर्जापुर के पास दो अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें पहचान लिया। सैनिकों ने गिरफ्तार करके कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें वहीं गोली मार दी। ट्रेन में ही ‘भारत माता की जय’ बोलते हुए भैयालाल शहीद हो गए। सैनिकों ने इलाहाबाद जंक्शन पर भैयालाल के शव को बाहर निकाला और पुलिस के संरक्षण में गुपचुप तरीके से उनका दाह संस्कार कर दिया। दो दिन बाद उनके परिवार को तार से सूचना मिली, तो पूरा दमोह अंग्रेजों के विरुद्ध उबल पड़ा।-संकलन: रमेश जैन