तो इस वजह से स्‍वामी विवेकानंद को माना जाता है नारायण का रूप?

बात सन 1881 की है। तब नरेंद्रनाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद) एमए की परीक्षा की तैयारी कर रहे थे। उनके पुश्तैनी घर कोलकाता सिमुलिया में ठाकुर रामकृष्ण परमहंस को लेकर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। नरेंद्र गाते हैं, यह सभी को पता था। नरेंद्र को जानने वाले सुरेंद्रनाथ ने कार्यक्रम में गाने के लिए नरेंद्र को भी आमंत्रित किया। यहीं पर ठाकुर रामकृष्ण परमहंस से नरेंद्र का प्रथम मिलन हुआ। तभी ठाकुर नरेंद्र के प्रति आकर्षित हुए थे। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद ठाकुर ने भक्त रामचंद्र दत्त और सुरेंद्रनाथ से उन्हें एक दिन दक्षिणेश्वर लेकर आने के लिए कहा था। इस बीच नरेंद्रनाथ के एमए का रिजल्ट आ गया। वह द्वितीय श्रेणी से पास हुए। उनकी शादी का प्रस्ताव आया, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। इस तरह समय थोड़ा आगे खिंच गया।

एक दिन भक्त सुरेंद्रनाथ अपने कुछ साथियों के साथ नरेंद्र को लेकर दक्षिणेश्वर पहुंचे। ठाकुर के कहने पर उन्होंने गाना गाया। गाना सुनने के बाद ठाकुर उन्हें एकांत में ले गए और हाथ जोड़कर उनसे कहने लगे, ‘मैं जानता हूं प्रभु, आप वही प्राचीन ऋषि हैं। नर रूप में नारायण हैं, प्राणियों की दुर्गति को दूर करने के लिए आपने फिर से शरीर धारण किया है।’ नरेंद्र चुपचाप खड़े रहे और ठाकुर कमरे के अंदर चले गए। बाहर निकले तो उनके हाथों में माखन, मिसरी और कई प्रकार की मिठाइयां थीं। ठाकुर अपने हाथ से नरेंद्र को खिलाने लगे। नरेंद्र ने कहा, ‘खाने की ये चीजें मुझे दे दीजिए, अपने साथियों के साथ बांटकर खा लूंगा।’ लेकिन ठाकुर ने उनकी एक न सुनी और कहा, ‘वे लोग खाएंगे, अभी तुम खाओ।’ उन्हें खाते देख ठाकुर भाव-विभोर हो रहे थे।

जब नरेंद्र ने मिठाइयां खा लीं, तब ठाकुर ने उनके हाथ पकड़कर कहा, ‘मुझे वचन दो, जल्द ही तुम अकेले मेरे पास आओगे। कहो, आओगे न?’ नरेंद्र उनके अनुरोध को ठुकरा नहीं पाए और मजबूर होकर कहा, ‘आऊंगा।’

संकलन : दिलीप लाल