तो इस वजह से बहते हैं श्रीकृष्ण की आंखों से आंसू

एकबार भगवान श्रीकृष्ण को रोते हुए देखकर एक गोपी ने उनके रोने का कारण पूछा। इसके उत्तर में श्रीकृष्ण गोपी से कहते हैं सुनो, सखी, जहां प्रेम है, वहां निश्चय ही आंखों से आंसुओं की धारा बहती रहेगी। प्रेमी का हृदय पिघलकर आंसुओं के रूप में निरंतर बहता रहता है और उसी अश्रु-जल, प्रेमजल में प्रेम का पौधा अंकुरित होकर निरंतर बढ़ता रहता है।

श्रीकृष्ण गोपी को विस्तार से अपने बहते अश्रुओं के बारे में बताते हुए कहते हैं ‘सखि! मैं स्वयं प्रेमी के प्रेम में निरंतर रोता रहता हूं। मेरी आंखों से निरंतर आंसुओं की धारा चलती रहती है। मैं नहीं चाहता था कि मैं तुम्हें अपने रोने का कारण बताऊं, पर तुमने बार-बार पूछा- तुम क्यों रोते हो? तो आज बात कह रहा हूं। मैं अपने प्रेमी के प्रेम में रोता हूं, जो मेरा प्रेमी है वह निरंतर रोता है और मैं भी उसके लिए निरंतर रोता ही रहता हूं।’

श्रीकृष्ण आगे प्रेम के बारे में गहरी बात बताते हुए कहते हैं कि ‘सखि! जिस दिन मेरे जैसे प्रेम के समुद्र में तुम डूबोगी, जिस दिन तुम्हारे हृदय में प्रेम का समुद्र- उसी प्रेम का समुद्र जो मेरे भी हृदय में नित्य-निरंतर लहराता रहता है, लहराने लगेगा, उस दिन तुम भी मेरी ही तरह बस, केवल रोती ही रहोगी। ‘

श्रीकृष्ण गोपी को आंसू की पवित्रता का बखान करते हुए कहते हैं कि हे सखि! प्रेम में बहने वाले उन आंसुओं की धारा से जगत पवित्र होता है। वास्तव में वे आंसू की श्रेणी में नहीं आते हैं, वे तो गंगा-जमुना की धारा हैं। उनमें डुबकी लगाने पर फिर त्रिताप नहीं रहते।

श्रीकृष्ण बताते हैं कि कैसे उनसे अपनी गोपियों का रोना नहीं देखा जाता है और देखते ही उनके नेत्रों से भी अश्रु की धारा निकलने लगती है। भगवान कहते हैं कि, सखि मैं देखता हूं, मेरी गोपी मेरे प्राणों के समान प्यारी गोपी रो रही है, बस मैं भी यह देखते ही रोने लग जाता हूं। मेरा हृदय भी रोने लग जाता है। मेरी प्रिया-प्राणों से बढ़कर प्यारी गोपी जिस प्रकार एकांत में बैठकर रोती है, वैसे ही मैं भी एकांत में बैठकर रोता हूं और रो-रोकर प्राण शीतल करता हूं। यही है मेरे रोने का रहस्य।