झूठे लोग जल्दी पहचान में आते हैं

कबीर वाणी

चाल बकुल की चलत है, बहुरि कहावै हंस
ते मुक्ता कैसे चुगे, पड़े काल के फंस।।

जो बगुले के आचरण में चलकर, पुनः हंस कहलाते हैं, वे ज्ञान मोती कैसे चुगेंगे? वे तो कल्पना काल में पड़े हैं।

बाना पहिरे सिंह का, चलै भेड़ की चाल।
बोली बोले सियार की, कुत्ता खावै फाल।।

सिंह का वेश पहनकर, जो भेड़ की चाल चलता और सियार की बोली बोलता है, उसे एक दिन कुत्ता जरूर फाड़ खाएगा।

कवि तो कोटि कोटि हैं, सिर के मूड़े कोट।
मन के मूड़े देखि करि, ता संग लिजै ओट।।

करोडों-करोडों हैं कविता करने वाले और करोडों है सिर मुंड़ाकर घूमने वाले वेषधारी, लेकिन हे जिज्ञासु! जिसने अपने मन को मूंड लिया हो, ऐसा विवेकी सतगुरु देखकर तू उसकी शरण ले।

भेष देख मत भूलये, बुझि लीजिये ज्ञान।
बिना कसौटी होत नहिं, कंचन की पहिचान।।

केवल उत्तम साधु वेश देखकर मत भूल जाओ, उनसे ज्ञान की बातें पूछो। बिना कसौटी के सोने की पहचान नहीं होती।

साभार: shirdi-sai-rasoi.blogspot.in