पैगंबर मुहम्मद साहब ने फरमाया, ‘वह बदतरीन बर्तन जो इंसान भरता है, वह उसका पेट है।’
(तिर्मीज़ी)
इस हदीस में तुष्टि पर भोजन करने को बदतरीन खसलत करार दिया गया है। और यह बात बिल्कुल सही है कि ज़्यादा खाना बहुत सी बुराइयों की जड़ है। ऐसा आदमी केवल खाने-पीने की चिंता में रहता है और किसी समय वह यह भी तमीज़ नहीं करता कि जिस खाने से पेट भर रहा है, वह वैध है या अवैध। यह आदत लोक और परलोक दोनों की समस्या का कारण है। इसीलिए एक दूसरे स्थान पर मुहम्मद साहब के प्रवचनों में आता है- ‘अधिक खान-पान करने वाला कयामत के दिन भूखा होगा।’ (मसनद बज़ार)
डॉक्टर मोहम्मद उस्मान निजात लिखते हैं: खाने में इसराफ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और उसका शरीर मोटा हो जाता है, जिससे अनेक रोग पैदा हो जाते हैं। इंसान को खाने की केवल थोड़ी मात्रा की जरूरत है, जो मानव शरीर में इतनी ऊर्जा पैदा कर सके जितनी ऊर्जा मानव जीवन के लिए आवश्यक है और स्वास्थ्य अच्छा रह सके और वह अपनी दैनिक ज़िम्मेदारियां पूरी कर सके। मानव शरीर को जितने खाने की जरूरत है, उससे अधिक शरीर में प्रवेश होने वाला भोजन चर्बी बन जाता है जिसकी वजह से इंसान का वजन बढ़ जाता है, उसकी गति धीमी हो जाती है और इंसान बहुत जल्दी थकान का एहसास करने लगता है, तथा मानव शरीर कई रोगों का शिकार हो जाता है। तुष्टि से अधिक खाने से कुरआन और हदीस में जो मनाही है इसी से इसकी हिकमत समझ में आती है।
(हदीस नबवी और विज्ञान, डॉक्टर मोहम्मद उस्मान निजाती, पेज 51)
इस्लाम में प्रति वर्ष एक महीने का रोज़ा ज्यादा खान-पान से पैदा होने वाले रोगों का निवारण करता है। इसी लिए मुहम्मद साहब ने फरमाया, ‘रोज़ा रखो, निरोग रहोगे।’
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