जीवन में ऐसे लाएं बसंत का आनंद

प्रणव पण्डया/शांतिकुंज,हरिद्वार

हम हर साल बसंत पंचमी और बसंत के आगमन का त्योहार मनाते हैं। लेकिन क्या हमारे जीवन में कभी वास्तव में बसंत का आगमन हो पाया है। दरअसल जिस तरह की बसंत पंचमी हम मना रहे हैं उसमें यह संभव भी नहीं है। हमें कुछ इस तरह बसंत के आगमन का त्योहार मनाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे हमारी जिंदगी संवर जाए और हम भव-भंवर से उबरकर अपने ‘स्व’ के रस-रंग में रंग जाएं।

बसंत के आने का अर्थ कुछ ऐसा होना चाहिए कि हम एक नए व्यक्ति बन जाएं, हमारी वाणी में, कर्म में, चिंतन में कुछ ऐसी तरंगें तरंगित हों, जिनसे हमारे अन्दर सच्चिदानन्द की सच्ची लगन जाग उठे। हम बाहरी खुशियों से नहीं, अन्दर का प्रसादपूर्ण जीवन जिएं और बसंत की तरह औरों को सदा प्रसाद भी बांटते रहें। तभी तो बसंत का कुछ मजा है।

आइए, संकल्प लेते हैं कि हम पाश्चात्य की तरह उल्लास उमंगों के क्षणों को मर्यादाहीन रूप से नहीं जिएंगे। भद्दे, कुरूप ढंग के रस-रंग में स्वयं को सराबोर नहीं करेंगे। सबके साथ प्रेम भाव से, प्रेरक ढंग से, सुरुचिपूर्ण रूप से बसंत का उत्सव मनाएंगे।

जवानी ऐसी जगाएंगे कि अचिंत्य-चिंतन के बुढ़ापा को दूर भागने में अपने आप मजबूर होना पड़े। कोयल की तरह हमारी वाणी मधुर हो, फूलों की तरह हमारे विचारों में सुवास हो, भौंरों की तरह हम वेदमन्त्रों को सर्वदा गुनगुनाते रहें।

हरियाली की तरह औरों के चहेता बने रहें, सुगन्ध की तरह लोग हमें सदा अपने पास ही रखना चाहें, बयार की तरह हमारा स्पर्श सबको सुहाना लगे। हम जहां जाएं हमें पास पाकर लोग झूम उठें, यदि हमारा ऐसा व्यक्तित्व बन पाया तो ही समझेंगे कि हमारे लिए वास्तव में बसंत आया, अन्यथा नहीं।