जिद करने पर ही ध्यान भंग होता है

संत आसाराम बापू
गृहस्थ जीवन में
साधना से विक्षेप होने पर अगर गृहस्थ छोड़कर भागोगे, तो जहां जाओगे वहां भी विक्षेप होगा। विक्षेप से भागो मत। अपने मन की हो तो खुश मत हो और अपने मन के विपरीत हो तो विक्षिप्त मत हो। अपने मन के नही हुई तो चलो हम चाहते हैं ऐसी नही हुई तो कोई सत्ता है, जो उसके चाह का हुआ है, तो भगवान ने अपना चाहा किया वाह-वाह। अपने मन की होती है तो हम फसते हैं आसक्ति में , अपने मन की नही हुई तो हमे मुक्ति का मजा आएगा, क्या फर्क पड़ता है ? तो विक्षेप कहां रहेगा ? विक्षेप उन्हीं बेवकूफ लोगों को होता है, जो अपने मन की ठानते हैं और नही होती है तो परेशानी पैदा करते हैं।

प्रकृति के, ईश्वर के अथवा नियम के आड़े खड़े होते हैं वे लोग परेशान होते हैं। मैं तो बड़ा परेशान हूं , मैं तो बड़ा परेशान हूं, मैं तो बड़ा परेशान हूं। अरे संसार के नियम हैं, सब एक व्यक्ति की चाही नही होगी, अपने मन की चाही सबकी नही होती और थोड़ी-बहुत किसी की होती है। हम जो चाहते सब होता नही, जो होता है वो टिकता नहीं , जो होता है वो भाता नही, और जो भाता है वो टिकता नही। ये कथा तो हमने बार-बार कही है।

अपने मन की, किसी की चाहे रामजी हो, चाहे ईसामसीह हो, चाहे बड़ा अवतारी हो, अपने मन की सब नहीं होती। अगर सब किसी एक व्यक्ति या एक अवतार के मन की हो तो प्रकृति में उथल-पुथल हो जाये , व्यवस्था भंग हो जाये। वो तो जो होता है, आदि नियम है, उसी अनुसार होगा। हम जो चाहते वो सब होता नही, जो होता है वो सब भाता नही, और जो भाता है वो टिकता नही। इसी में नया रस है, आनंद है और उन्नति है।

भाया, मेरी पत्नी सदा रहे, मेरा पति सदा रहे, मेरा बेटा सदा रहे। तो टिकेंगे क्या ? अगर टिके तो संसार नर्क हो जाये। ये अच्छा है मरते हैं तो नये आते हैं, जरा फुल खिलते रहते हैं। मेरी दुकान मिटे नही, मेरा ये मिटे नही, वो मिटे नही, ये मिटे नही। कौन चाहेगा अपना कल्पना का संसार हट जाये, मिट जाये। लेकिन वो मिटता है, हटता है, तो नया आता है, अच्छा है न। तो विक्षेप, विक्षेप से भागो नही, विक्षेप न हो ऐसे ज्ञान में रहो। मन में विक्षेप आता है, लेकिन जैसे आग लगती है जंगल में तो आप सरोवर में खड़े तो जाते हैं तो आग से बच जाते हैं। ऐसे ही जब मन में विक्षेप आये तो ज्ञान के तालाब में आ जाओ।

साभार: ashram.org